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[ ६८२]
कुर्वतः!
कर्मणो गहना गतिः।
कर्म की गति गहन है। कर्मणो ज्ञानमतिरिच्यते।
कर्म से ज्ञान बढ़कर है। कर्मदोषाद दरिद्रता।
दरिद्रता कर्म-दोष का फल है। कर्मानुगो गच्छति जीव एकः ।
अकेला जीव कर्मानुसार गति पाता है। कर्मायत्तं फलं पुंसाम् ।
मनुष्य को फल की प्राप्ति कर्मानुसार होती है। कलासीमा काव्यम् ।
कला की सीमा काज्य है। कवयः किं न पश्यन्ति !
कवि क्या नहीं देखते ! कवले पतिता सद्यो वमयति ननु मक्षिकान-ग्रास में गिरी हुई मक्खी भोजनकर्ता को तुरन्त भोक्तारम् ।
वमन करा देती है। कष्टं निर्धनिकस्य जीवितमहो दारैरपि | हा ! निर्धन का जीवन इतना दुःखपूर्ण होता त्यज्यते।
है कि पत्नी भी उसका साथ छोड़ देती है। कष्टः खलु पराश्रयः।
दूसरे का भरोसा दुःखदायक होता है । कष्टादपि कष्टतरं परगृहवासः परान्नं च। पराये घर में निवास और पराये अन्न से निर्वाह
सबसे बड़े दुःख हैं। कस्त्यागः स्वकुटुम्बपोषणविधावर्थव्ययं | अपने कुटुम्ब के पालन में ही धन व्यय करने.
वाले व्यक्ति का त्याग भी कोई त्याग है ! कस्य नेष्टं हि यौवनम् ? ( कथा ) यौवन किसे अच्छा नहीं लगता ? कस्यचित् किमपि नो हरणीयम् । किसी का भी कुछ भी चुराना नहीं चाहिए। कस्य नोच्छखलं बाल्यं गुरुशासनवर्जितम् ? | गुरु का शासन न होने से किसका बचपन उच्छ
(कथा०) हल नहीं हो जाता ? कस्य सत्संगो न भवेच्छुभः ? ( कथा० ) सत्सङ्ग किसका भला नहीं करता ? कः कालस्य न गोचरान्तरगतः।
काल के क्षेत्र से बाहर कौन है ! कः परः प्रियवादिनाम् ।
मधुरभाषी का कोई शत्रु नहीं होता । कः पैतामहगोलकेऽत्र निखिलैः सम्मानितो | इस ब्राह्मण में सर्वसम्मानित कौन है ?
वर्तते? कः प्राज्ञो वाञ्छति स्नेहं वेश्यासु सिकता- | कौन-सा विद्वान् वेश्याओं और रेत से स्नेह सुच? ( कथा०)
(प्रेम, तेल ) चाहता है ? कः सूनूविनयं विना!
विनय से रहित पुत्र क्या ! काकाः किमपराध्यन्ति हंसैर्जग्धेषु शालिपु! | जब धानों को हंस खा गये तब कौए क्या
(कथा.) अपराध करेंगे! कान्ता रूपवती शत्रुः ।
सुरूपा पत्नी शत्रु है। कामं व्यसनवृक्षस्य मूलं दुर्जनसंगतिः। बुरी संगत व्यसन-रूपी वृक्ष की जड़ है।
(कथा०) कामातुराणां न भयं न लजा।
कामपीड़ित व्यक्ति भय और लज्जा से रहित
होते हैं। कामिनश्च कुतो विद्या?
कामी को विद्या कहाँ ? कायः कस्य न वल्लभः ?
शरीर किसे प्यारा नहीं होता ? कालस्य कुटिला गतिः।
काल की चाल टेढ़ी होती है। काले खलु समारब्धाः फलं बध्नन्ति | समय पर प्रयुक्त नीतियाँ अवश्य फल लाती हैं।
नीतयः । (रघु०) काले दत्तं वरं ह्यल्पमकाले बहुनापि किम् ! समय पर दिया हुआ थोड़ा भी दान असमय
(कथा) । पर दिये हुए बड़े दान से अच्छा होता है ।।
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