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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ६८० ] अस्थिरं जीवितं लोके । अस्थिरः पुत्रदाराश्च । अस्थिरे धनयौवने | स्वयं लोकविद्विष्टम् । अहितो देहजो व्याधिः । अहो चित्राकारा नियतिरिव नीतिर्नयविदः । अहो दुरन्ता बलवद्विरोधिता । ( किरात ० ) अहो दैवाभिशप्तानां प्राप्तोऽप्यर्थः पलायते । ( कथा० ) अहो रूपम्, अहो ध्वनिः । आकण्ठजलमग्नोऽपि श्वा लिहत्येव जिह्वया । आचारः प्रथमो धर्मः । आज्ञा गुरूणां ह्यविचारणीया । ( रघु० ) जगत् में जीवन अस्थिर है । पुत्र और कलत्र अस्थिर हैं । धन और यौवन अस्थिर हैं । लोकविरुद्ध आचरण सुखदायक नहीं होता | शरीर में उत्पन्न रोग शत्रु है । नीतिज्ञ की नीति नियति के समान विचित्र रूपों वाली होती है । बलवान् से विरोध करने का परिणाम बुरा ही होता है । हा ! देव से शापित लोगों के बने हुए काम भी बिगड़ जाते हैं । वाह ! क्या रूप है और क्या स्वर ! गले तक पानी में डूबा हुआ भी कुत्ता जल को जीभ से ही चाटता है । आचार सर्वोत्तम धर्म है । गुरुजनों की आज्ञा का बिना विचारे ही पालन करना चाहिए । आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत् । आदानं हि विसर्गाय सतां वारिमुचामिव । ( रघु० ) आपत्काले च कष्टेऽपि नोत्साहस्त्यज्यते बुधैः । (कथा० ) आपत्सु धीरान् पुरुषान् स्वयमायान्ति संपदः । ( कथा० ) आपदि स्फुरति प्रज्ञा यस्य धीरः स एव हि। ( कथा० ) आपद्यपि सतीवृत्तं किं मुञ्चन्ति कुलस्त्रियः ? ( कथा० ) आपन्नार्तिप्रशमनफलाः संपदो ह्युत्तमानाम् ( मेघदूते ) आमुखापाति कल्याणं कार्यसिद्धिं हि शंसति । ( कथा० ) । आये दुःखं व्यये दुःखं धिगर्थाः कष्टसंश्रयाः । धन का आगम और व्यय दोनों ही दुःखपूर्ण | आरब्धे हि सुदुष्करेऽपि महतां मध्ये विरामः कुतः । ( कथा० ) होते हैं; इस दुःखदायक धन को धिक्कार है । आरम्भ किये हुए अत्यन्त कठिन काम में भी बड़े लोग बीच में नहीं रुकते । आर्जवं हि कुटिलेषु न नीतिः । कुटिलों के साथ सरलता का व्यवहार नीति नहीं है। ( नैषधीयचरिते ) आलस्योपहता विद्या । आवेष्टितो महासपैंश्चन्दनः किं विषायते ? आलस्य विद्या का विनाशक है । सर्पों से परिवेष्टित चन्दन क्या विषैला हो जाता है ? आहार और व्यवहार में संकोच छोड़कर सुखी रहे । आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत् । अपने रक्षार्थ पृथ्वी को भी त्याग दे । मेघों के समान सत्पुरुषों का आदान भी प्रदान के लिए ही होता है । विपत्ति और कष्ट के समय में भी बुद्धिमान् उत्साह नहीं छोड़ते । आपत्तियों में धैर्य रखने वालों के पास सम्पत्तियाँ स्वयमेव आती हैं । जिसकी बुद्धि आपत्ति में चमकती है, वह धीर है । क्या कुलीन ललनाएँ आपत्ति में भी सतीत्व का त्याग करती हैं ? उत्तम जनों का धन दुखियों के दुःख दूर करने पर ही सफल होता है । कार्यारम्भ में होने वाला मंगल, कार्यसिद्धि का सूचक होता है । For Private And Personal Use Only
SR No.091001
Book TitleAdarsha Hindi Sanskrit kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamsarup
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages831
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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