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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । ६७८ अनार्यः परदारव्यवहारः। (अभिज्ञानशाकुन्तले), पराई स्त्रियों से सम्बन्ध रखना आर्योचित नहीं। अनार्यसंगमावरं विरोधोऽपि समं महा- अनार्यों ( दुष्टों ) के साथ मेल-जोल की अपेक्षा त्मभिः । (किरातार्जुनीये) महात्माओं से वैर अच्छा। अनाश्रया न शोभन्ते पण्डिता वनिता | विद्वान्, स्त्रियाँ और लताएँ. आश्रय के विना लताः। शोभा नहीं देती। अनिर्वर्णनीयं परकलत्रम् । ( अभिज्ञान०) पराई स्त्रियों की ओर ताकना न चाहिए । अनुकूलेऽपि कलत्रे नीचः परदारलम्पटो पत्नी के अनुकूल होने पर भी नीच मनुष्य भवति । परदाराभिगमन करता है। अनुत्सेकः खलु विक्रमालंकारः। नव्रता वीरता का भूषण है। अनुभवति हि मूर्ना पादपस्तीव्रमुष्णं वृक्ष स्वयं तो कड़ी धूप सहता है, परन्तु शरणा शमयति परितापं छायया संश्रिता. गतों के ताप को छाया से शान्त कर नाम् । ( अभिज्ञान०) देता है। अनुसृत्य सतां वर्त्म यत्स्वल्पमपि तद् बहु । सज्जनों के मार्ग पर चलते हुए थोड़ा भी मिले तो बहुत समझिए। अनुहंकुरुते धनध्वनि नहि गोमायुरुतानि | सिंह मेघ गर्जन सुनकर तो दहाड़ता है, गीदड़ों केसरी। (शिशु०) । की ध्वनि सुनकर नहीं। अन्तःसारविहीनानामुपदेशो न विद्यते। जबुद्धि मनुष्य को शिक्षा देना व्यर्थ है। अन्यायं कुरुते यदा क्षितिपतिः कस्तं जब राजा ही अन्याय करने लग पड़े तब उसे निरोर्बु क्षमः? कौन रोक सकता है ? अपथे पदमर्पयन्ति हि श्रुतवन्तोऽपि रजो. रजोगुण से अभिभूत विद्वान् भी कुमार्गगामी निमीलिताः । (रघुवंशे) बन जाते हैं। अपन्थानं तु गच्छन्तं सोदरोऽपि विमुञ्चति । कुपथगामी का साथ सगा भाई भी नहीं देता। . अपायो मस्तकस्थो हि विषयग्रस्तचेतसाम्। विपत्तियाँ विषयी लोगों के सिर पर मँडराती (कथा०) रहती है। अपि धन्वन्तरिवैद्यः किं करोति गतायुषि। जब आयु समाप्त हो जाती है तब वैद्य धन्वन्तरि भी कुछ नहीं कर सकता। अपि स्वदेहात् किमुतेन्द्रियार्थाद्यशोधनानां यशस्वी लोग, भोगों की तो बात ही क्या, हि यशो गरीयः । ( रघु०) ___ स्वशरीर से भी यश को श्रेष्ठ समझते हैं । अपुत्रस्य गृहं शून्यम् । पुत्रहीन व्यक्ति के लिए घर सूना होता है ।। अपेक्षन्ते हि विपदः किं पेलवमपेलवम् ! विपत्तियाँ लक्ष्य की कोमलता वा कठोरता नहीं (कथा०) देखा करती। अप्रकटीकृतशक्तिः शक्तोऽपि जनस्तिरस्क्रियां जो बलवान् निज बल को कभी प्रकट नहीं लभते। करता वह तिरस्कार का भाजन बनता है। अप्राप्यं नाम नेहास्ति धीरस्य व्यव- धीर और व्यवसायी व्यक्ति के लिए संसार में सायिनः । (कथा) । कोई भी वस्तु अप्राप्य नहीं । अप्रियस्य च पथ्यस्य वक्ता श्रोता च कड़वी परन्तु हितकर बात कहने और सुनने दुर्लभः। । वाले व्यक्ति दुर्लभ है। अबला यत्र प्रबला। | जहाँ स्त्री सबल हो । अभद्रं भद्रं वा विधिलिखितमुन्मूलयति | बुरा हो या भला, विधाता के लेख को कौन का? मिटा सकता है ? अभितप्तमयोऽपि मार्दवं भजते कैव कथा | तपाने पर लोहा भी पिघल जाता है, प्राणियों शरीरिषु ! ( रघु०) की तो बात ही क्या ? अभोगस्य हतं धनम् । | जो भोगता नहीं, उसका धन व्यर्थ है। For Private And Personal Use Only
SR No.091001
Book TitleAdarsha Hindi Sanskrit kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamsarup
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages831
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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