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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम परिशिष्ट संस्कृत-सूक्तियों का हिन्दी-अनुवाद संस्कृत हिन्दी अकालमेघवद् वित्तमकस्मादेति याति च। धन अकाल-मेघ के समान अकस्मात आता. (कथासरित्सागर ) । जाता है। अक्षोभ्यतैव महतां महत्त्वस्य हि लक्षणम् ।। क्षुब्ध न होना हो बड़ों के बड़प्पन का चिह्न है। (कथा०) अगच्छन् वैनतेयोऽपि पदमेकं न गच्छति । | बिना चले तो गरुड़ भी पग-भर भी नहीं जा सकता। अगुणस्य हतं रूपम् । निर्गुण व्यक्ति का रूप किस काम का ? अङ्कमारुह्य सुप्तं हि हत्वा किं नाम पौरुषम् ? गोद में सोये हुए की हत्या में कहाँ की वीरता है। अङ्गीकृतं सुकृतिनः परिपालयन्ति । श्रेष्ठ लोग कही हुई बात को पूरा करते हैं। अचिन्त्यं हि फलं सूते सद्यः सुकृतपादपः। पुण्यरूपी वृक्ष शीघ्र ही अचिन्त्य फल देता है। (कथा०) अजीणे भोजनं विषम् । अपच में भोजन विष तुल्य होता है। अज्ञता कस्य नामेह नोपहासाय जायते? | अज्ञान के कारण किसका उपहास नहीं होता ? अतिदानाद् बलिर्बद्धः। अत्यधिक दान से बलि को बँधना पड़ा। अतिपरिचयादवज्ञा, संततगमनादनादरो बहुत मेल-जोल से अवज्ञा होती है और किसी भवति। के यहाँ अधिक जाने से अनादर । अतिभुक्तिरतीवोक्तिः सद्यः प्राणापहारिणी।। बहुत खाने और बहुत बोलने से तुरन्त मृत्यु हो जाती है। अतिलोभो न कर्तव्यः। अत्यधिक लोभ नहीं करना चाहिए। अति सर्वत्र वर्जयेत् । सब बातों में 'अति' त्याज्य है । अतृणे पतितो वह्निः स्वयमेवोपशाम्यति । | जो आग तृणादि पर नहीं पड़ी, वह स्वयमेव बुझ जाती है। अधरेष्वशुतं हि चोषितां हृदि हालाहलमेव | स्त्रियों के ओठों में तो अमृत रहता है किंतु केवलम् । हृदय में भयंकर विष । अधर्मविषवृक्षस्य पच्यते स्वादु किं फलम् ? क्या कभी अधर्मरूपी विषवृक्ष पर सरस फल (कथा०) ___लग सकते हैं ? अधिकस्याधिकं फलम् । जितना गुड़ उतना मीठा । अनध्वा वाजिनां जरा। सदा बँधे रहनेवाले घोड़े बूढ़े हो जाते हैं। अनन्यगामिनी पुंसां कीर्तिरेका पतिव्रता। पुरुषों की स्थायी कीति पतिव्रता नारी के समान होती है। अनपेक्ष्य गुणागुणौ जनः स्वरुचि निश्चयतोऽ- वस्तुतः मनुष्य गुण-दोष की उपेक्षा करके रुचि नुधावति । (शिशुपालवधे ) के अनुसार ही कार्य करता है। अनवसरे याचितमिति सत्पात्रमपि कुप्यते | यदि कुअवसर पर माँगा जाए तो दानी मनुष्य दाता। सत्पात्र पर भी क्रोध करता है। For Private And Personal Use Only
SR No.091001
Book TitleAdarsha Hindi Sanskrit kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamsarup
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages831
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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