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कोष, महाभारतकोष, पुराणकोष, व्याकरण, साहित्य, धर्मशास्त्र, मीमांसा, न्याय, योग, तन्त्र, सांख्य, वेदान्त, अर्थशास्त्र आदि सभी विषयों के कोष अब उपलब्ध हो चुके हैं । जो विषय अछूते रह गए हैं उन विषयों पर भी कोषग्रन्थं की रचना शीघ्र हो जायगी । उपनिषदों के आधार पर जैकब का उपनिषद् वाक्यकोष बहुत पहले ही बन चुका था ( १८९१ ई० ) ।
कोषविद्या के इस संक्षिप्त विवरण से यह निष्कर्ष निकलता है कि संस्कृत तथा प्राकृत के विद्वानों ने अपनी शब्दनिधि को सुरक्षित रखने तथा प्रचलित करने के लिये कोषग्रन्थों की रचना कर जो प्रयास किये हैं वे सर्वथा श्लाघनीय हैं । विश्व में कोषग्रन्थों का इतना विस्तृत एवं प्राचीन परिचय चीनी भाषा को छोड़ कर फिर संस्कृत में ही विद्यमान है। इस धरोहर को सुरक्षित रखना प्रत्येक संस्कृतज्ञ का पवित्र कर्तव्य है ।
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पालदत्त पाण्डेय