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1. )
हेमचन्द्र का देशीनाममाला प्राकृत-कोश बड़ा सुन्दर तथा रोचक है । इसमें आठ अध्याय ( वर्ग ) हैं । इन अध्यायों में शब्दों का संग्रह आदिम अक्षर को अभिलक्षित कर किया गया है | पर्यायवाची शब्द के अनन्तर उसी अक्षर से आरम्भ होने वाले नानार्थ शब्द भी रखे गए हैं । इस ग्रन्थ में तद्भव शब्दों की प्रधानता होने से प्राकृत शब्दों के ज्ञान में बड़ी सहायता मिलती है । इस कोष के अनुशीलन से उस युग ( १२वीं शती) के रीति-रिवाजों का भी पता चलता है ।
इस बीच दो प्राकृत कोशों का प्रकाशन बड़ा उपयोगी सिद्ध हुआ है । ये दो कोश हैं - ( १ ) अभिधान राजेन्द्र-कोश तथा ( २ ) प्राकृत शब्दमहार्णव । इनमें से प्रथम ग्रन्थ तो जैनधर्म का विश्वकोष ही है, जिसमें जैनधर्म, जैन दर्शन तथा साहित्य के विषयों को अभिलक्षित कर प्राचीन ग्रन्थों के उद्धरणों के साथ बड़ा साङ्गोपाङ्ग विवेचन है । यह ग्रन्थ विशालकाय है, सात खण्डों में विभक्त है । इसकी पृष्ठ संख्या १०,००० है । प्राकृतशब्दमहार्णव इसकी अपेक्षा लघुकाय है । इसका आयाम लगभग १५०० पृष्ठों में सीमित है । यह नवीन शैली का कोश है । इसमें प्रयोगस्थलों का निर्देश बड़ी सुन्दरता के साथ किया गया है ।
( ख ) मुगलकाल में फारसी का प्राधान्य होने के कारण फारसी-संस्कृत कोषों की आवश्यकता प्रतीत हुई। इसके फलस्वरूप अकबर बादशाह के आदेश से विहारी कृष्णदास मिश्र ने पारसीकप्रकाश ग्रन्थ की रचना की । इस ग्रन्थ के दो भाग हैं - कोश तथा व्याकरण | २६९ अनुष्टुप् - श्लोकों में ग्यारह प्रकरणों का समावेश किया गया है। प्रकरणों का शीर्षक अधिकतर अमरकोष के समान है । इसमें फारसी शब्दों के संस्कृत पर्याय दिये गए हैं। इसी प्रकार का दूसरा ग्रन्थ वेदाङ्गराय द्वारा विरचित पारसी - प्रकाश ( १६४७ ई० ) है । इसमें फारसी तथा अरबी के शब्दों का संस्कृत में अर्थ दिया गया है । तीसरा ग्रन्थ पारसीविनोद भी इसी समय लिखा गया। इसके रचयिता व्रजभूषण थे । महाकवि क्षेमेन्द्र का लोकप्रकाश भी इस दृष्टि से उपयोगी है। इसमें भी फारसी के बहुत शब्दों का प्रयोग हुआ है । इस ग्रन्थ में शाहजहाँ का भी उल्लेख होने से यह विदित होता है कि इसमें कुछ अंश सत्रहवीं शती में जोड़ दिया गया हो ।
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विशिष्ट - कोष
संस्कृत वाङ्मय के विशिष्ट विषयों को अभिलक्षित कर भी विद्वानों ने अनेक कोष -ग्रन्थ बनाये । संगीत में संगीतराज नामक विशालकाय ग्रन्थ का एक भाग कोष के रूप में प्रख्यात है । उस अंश को नृत्यरत्नकोष कहा गया है। इसके लेखक महाराणा कुम्भकर्ण हैं। किसी अज्ञात लेखक ने वस्तुरत्नकोश की रचना भी को है । इसमें सामान्य विषयों की जानकारी दी गई है । यह ग्रन्थ दो भागों में
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