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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २८ ) “भौगोलिक एवं ऐतिहासिक स्थलों का विवेचन भी यथास्थान किया गया है। हाल में इसका नवीन संस्करण तीन खण्डों में पुणे से प्रकाशित हुआ है। इसके अतिरिक्त छात्रोपयोगी संस्कृत-हिन्दी लघु संस्करण भी प्रकाशित हुआ है । नवीन संस्करण में शब्दों के चयन में सम्पादकों ने वृद्धि की है। ___ शब्दपरायण की प्रक्रिया को अभिनव रूप देने वालों में महामहोपाध्याय पण्डित रामावतार शर्मा प्रमुख रहे हैं। उन्होंने एक विशाल कोष की रचना की। इस कोष का नाम है-वाङ्मयार्णव । शर्माजी ( १८७७-१९२९ ई० ) ने इस कोश का प्रारम्भ १९११ ई० में किया। जीवन भर वे इसमें परिवर्तन-परिवर्धन करते रहे । आचार्य बलदेव उपाध्यायजी के अनुसार यह कोष नामलिङ्गानुशासन की परम्परा का सार्वभौम ग्रन्थ है। यह नानार्थक कोष है। इसमें शब्दों का चयन वैज्ञानिक वर्णक्रमानुसार किया गया है । वैदिक तथा लौकिक दोनों प्रकार के शब्दों का इसमें समावेश है। इस कोष में प्रत्येक शब्द की व्युत्पत्ति के साथ उसके प्रयोगस्थलों का भी समुचित निर्देश किया गया है । इसमें २०,००० शब्द उपन्यस्त हैं। साथ ही इस कोष की रचना पद्यमयी है तथा ६७९६ अनुष्टुपों में समाप्त हुआ है। ग्रन्थ के आरम्भ में १६ पद्यों का उपक्रम है एवम् अन्त में ६ श्लोकों में समापन किया गया है। ग्रन्थकार के निधन के ३८ वर्षों के सुदीर्घ काल के पश्चात् सन् १९६७ ई० में ज्ञानमण्डल प्रकाशन द्वारा यह प्रकाशित किया गया है। वर्तमान काल की कोष निर्माण प्रवृत्ति : जर्मन-संस्कृत कोष के प्रकाशन के लगभग एक शतक के बाद नवीन वैदिक कोष की आवश्यकता प्रतीत होने पर होशियारपुरस्थ विश्वेश्वरानन्द वैदिक संस्थान से अनेक विद्वानों के सहयोग से एक बृहद् वैदिक कोष का प्रकाशन हुआ है । इस कोष ने वैदिक संहिताओं के सम्बन्ध में ऋचाओं के सन्दर्भ की समस्या हल कर दी है। यद्यपि इसे शब्दपारायण की दृष्टि से कोष के अन्तर्गत नहीं रखा जा सकता है तथापि इसमें वैदिक शब्दों की सूची विद्यमान होने से वैदिक मूलशब्दों का परिचय सुलभ हो जाता है । इसके १६ खण्ड प्रकाशित हुए हैं । इसके १, वर्णानुक्रमविन्यस्तैर्लोकवेदोभयोद्धृतैः । पद्यवद्धैः सपर्यायै नार्थंघटतो महान् ॥ विशेषशास्त्र युर्वेदप्रभतीनां पदैर्युतः। सोपयुक्तोदाहृतिभिष्टिप्पणैः समलंकृतः ।। सचित्रः प्रचुराच्यवैज्ञानिकपदोच्चयः। परिशिष्टैश्च बहुभिः कोष एष परिष्कृतः॥ ( उपक्रम श्लोक ७,८,९) For Private And Personal Use Only
SR No.091001
Book TitleAdarsha Hindi Sanskrit kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamsarup
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages831
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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