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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २७ ) अनुसार अमरकोषकार ने अधिकतर अग्निपुराणोक्तक्रम ही अपनाया है। थोड़ा. बहुत परिवर्तन कर 'अमरकोष' की पूर्ति की है। जटाधर ने भी अमरकोष का अनुसरण किया है । शब्दकल्पद्रुम में २९ कोषों का उपयोग किया गया है।। ___ शब्दकल्पद्रुम के ढंग पर आगे चलकर दो कोष और बनाये गये। इनमें प्रथम शब्दार्थचिन्तामणि तो उतना विशाल नहीं है। उसमें केवल चार भाग हैं। उसके रचयिता सुखानन्दनाथ रहे। कोष की रचना १८६४-१८८५ तक हुई । दूसरा कोष वाचस्पत्यम् बड़ा विशाल है। सर्वप्रथम यह कलकत्ता से २० भागों में प्रकाशित हुआ ( १८७३-१८८४ ई०)। इसके संकलनकर्ता तारानाथ तर्कवाचस्पति थे। इसमें वैदिक शब्दों का भी समावेश है, किन्तु उनको व्युत्पत्ति अधिकतर कल्पनाप्रसूत है। इसी समय राथ तथा बोलिक नामक जर्मन विद्वानों द्वारा महान संस्कृत कोष को प्रणयन हुआ, जिसमें वैदिक शब्दों का भी पूर्ण समावेश है। इसकी रचना भाषावैज्ञानिक रीति पर की गई है। जर्मन विद्वानों ने अनेक पण्डितों की सहायता से शब्दों के प्रयोगस्थलों का भी निर्देश किया है । इसके साथ ही शब्दों के अर्थविकास को अङ्कित करने का भी इलाध्य प्रयास किया है। उस समय तक प्रकाशित तथा अप्रकाशित समस्त संस्कृत ग्रन्थों का विधिवत् अनुशीलन कर इस विशाल कोष की रचना की गई है। आचार्य बलदेव उपाध्याय के अनुसार डा० राथ ने वैदिक शब्दों का तथा डा० बोथलिंक ने वैदिकेतर शब्दों का विवरण भाषाशास्त्रीय पद्धति पर प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है । डा० बोथलिंक ने इसका एक संक्षिप्त संस्करण भी जर्मन भाषा में प्रकाशित किया था। __इसी क्रम में डा० भोनियर विलियम्स ने एक संस्कृत-अंग्रेजी कोष को रचना की। इनका परिश्रम श्लाघनीय है। शब्दों के चयन तथा अर्थनिर्देश में बड़ा परिश्रम किया गया है। केवल कमी इस बात की है कि प्रयोगस्थलों का निर्देश नहीं किया गया है। इस कोष की रचना उपर्युक्त जर्मन कोषों के आधार पर हुई है । यह कोष समानार्थक शब्दों के सम्बन्ध में बड़ा प्रामाणिक माना जाता है । इसका दूसरा स्वरूप अंग्रेजी से संस्कृत में भी है। इस प्रकार के कोषों की रचना में आगे चलकर भारतीय विद्वान् भी अग्रसर हुए, जिनमें वामन सदाशिव आप्टे का नाम विशेषतया उल्लेखनीय है। इन्होंने मी संस्कृत-अंग्रेजी तथा अंग्रेजी-संस्कृत कोषों की रचना की । यह कोष विद्वानों तथा छात्रों के लिये समान रूप से उपकारक है। इस कोष में वर्णक्रमानुसार शब्दों का चयन किया गया है। प्रयोगस्थलों के निर्देश में पुराण तथा काव्यादि के उद्धरणों का उपयोग किया गया है। शास्त्रीय परिभाषाओं, छन्दों, प्राचीन For Private And Personal Use Only
SR No.091001
Book TitleAdarsha Hindi Sanskrit kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamsarup
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages831
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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