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( २५ ) कोष ), निघण्टुकोष (वैद्यक ) तथा देशीनाममाला ( प्राकृतकोष )। इनमें से अभिधानचिन्तामणि को छह काण्डों में विभक्त किया गया है-देवाधिदेव, देव, मयं, भूमि, नरक तथा सामान्य । यह कोश नानावृत्तों में निबद्ध १५४२ पद्यों में समाप्त हुआ है। इस पर स्वयं ग्रन्थकार ने ही टीका लिखी है। अनेकार्थसंग्रह भी छह काण्डों में विभक्त है। इसमें १८२९ श्लोक हैं। शब्दों का संग्रह दो प्रकार से है-अन्तिम अक्षरों द्वारा तथा आदिम अक्षरों द्वारा। इन्होंने व्यवहार मे आने वाले संस्कृत शब्दों को यथावत् संगृहोत कर उनके प्रति निष्ठा व्यक्त की है। यह ग्रन्थ महाराष्ट्र के राजा सोमदेव के ग्रन्थ मानसोल्लास ( रचना ११३० ई० ) का समकालिक प्रतीत होता है। हेमचन्द्र का प्रभाव अवान्तरकालीन कोषकारों पर विशेष रूप से पड़ा है।
केशव स्वामी-इनके द्वारा विरचित नानार्णव-संक्षेप नानार्थ शब्दों का सबसे बड़ा कोष है। इसमें लगभग ५८०० श्लोक हैं । अक्षरों की गणना के आधार पर यह कोष भी छह काण्डों में विभक्त है तथा प्रत्येक काण्ड लिङ्ग के अनुसार पाँच भागों में विभक्त है। इसमें वैदिक शब्दों का संकलन भी विद्यमान है । यह गन्थ चोलवंशी नरेश राजराज चोल के आश्रय में रहकर लिखा गया है । इनका समय १२०० ई० के आस पास माना जाता है । इस ग्रन्थ के छह काण्डों में प्रतिकाण्ड पाँच अध्याय हैं। काण्डों का विभाजन एकाक्षर से लेकर षडक्षर तक है। अध्यायों का विभाजन लिङ्ग के अनुसार किया गया है-स्त्रीलिङ्ग, पुंलिङ्ग, नपुंसकलिङ्ग, वाच्यलिङ्ग तथा संकीर्णलिङ्ग । प्रत्येक अध्याय में शब्दों का चयन अक्षरक्रम से किया गया है । आधुनिक कोश-ग्रन्थों में यही क्रम स्वीकृत हैं। ___ केशव-अद्यावधि ज्ञात समानार्थ कोषों में केशव का कल्पद्रुकोष सबसे विशाल है । इसमें लगभग ४०० श्लोक हैं । इसके तीन स्कन्ध हैं-भूमि, भुवः तथा स्वर्ग । प्रत्येक स्कन्ध प्रकाण्डों में विभक्त है । ग्रन्थकार के अनुसार इसकी रचना १६६० में हुई। इस कोष के शब्दचयन में बड़ी विविधता है। अनेक ज्ञातव्य तथ्यों के संग्रह ने इसे विश्वकोष का रूप दिया है। इसमें समानार्थ शब्दों के साथ प्रयुक्त विषयों का विस्तृत वर्णन भी विद्यमान है।
शाहजी-यह विश्वविख्यात छत्रपति शिवाजी के भतीजे थे। तंजौर के इतिहास के अनुसार शाहजी का राज्य-समय ( १६८४-१७१२ ई०) विद्योन्नति के लिये प्रसिद्ध रहा है। इनकी सभा में ४७ विद्वान् रहते थे। इनका विरचित शब्दरत्नसमन्वय-कोष शब्दचयन की दृष्टि से बड़ा महत्त्वपूर्ण है। इस कोष में प्रत्येक वर्ग के भीतर अक्षर-क्रम से शब्दों का विन्यास किया गया है । शब्दों का अवान्तर क्रम भी अकारादि क्रम के अनुसार विद्यमान है। यह विशेषता संस्कृत के बहुत कम कोशों में पाई जाती है। इन्होंने 'क्ष' को अलग वर्ण के रूप में
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