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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२ ) समीक्षा कर अपने पाण्डित्य तथा अर्थ-निर्णय करने की क्षमता का परिचय दिया है । इस दृष्टि से निम्नलिखित विद्वान् प्रसिद्ध कोषकारों के रूप में सर्वमान्य हैं । शाश्वत-इनका समय भी छठी शताब्दी के आस-पास माना जाता है । इन्होंने स्वयम् अपने विषय में यह लिखा है कि मैंने तीन व्याकरणों को देखा तथा पाँच लिङ्गानुशासनों का अध्ययन किया। केवल इतना ही नहीं किन्तु शिष्ट-प्रयोगों के देखने में भी कोई कमी नहीं होने दी।' इनका विरचित कोष अनेकार्थ-समुच्चय है। इस कोष में केवल अनेकार्थ शब्दों का विस्तृत चयन है। शब्दों के चयन में अमरकोष की अपेक्षा अधिक विस्तार तथा प्रौढता दृष्टिगोचर होती है। प्रकृत कोष के अन्तिम पद्य से यह संकेत मिलता है कि ग्रन्थकार ने कवि महाबल तथा वराह से भी इस सम्बन्ध में परामर्श किया था। अनेक विद्वानों के सहयोग से इस कोष को रचना होने के कारण इसमें व्यापकता होना स्वाभाविक है। धनञ्जय-शाश्वत के लगभग दो शताब्दी पश्चात् धनञ्जय ने 'नाममाला' कोष की रचना की। यह कोष व्यवहार में आने वाले लोकप्रचलित संस्कृत शब्दों का उपयोगी कोष है। इसे लघुकोष कहना ही उचित है। इसमें केवल २०० श्लोक हैं। विशेषता इस बात में है कि ग्रन्थकार ने शब्दों की रचना के सुन्दर उपाय बताये हैं। उदाहरणार्थ पृथ्वीवाचक शाब्दों में 'धर' लगा देने से पर्वतवाची शब्दों का बोध होता है ( मही + धर, पृथ्वी + घर आदि )। इसी प्रकार मनुष्यवाची शब्दों में 'पति' शब्द जोड़ देने से राजा के नाम ( नर + पति, नृ + पति ) तथा वृक्षवाची शब्दों में 'चर' शब्द जोड़ने में बन्दर के समानार्थक शब्द बन जाते है ( द्रुम + चर, वृक्ष + चर आदि )। इस कोष की यही विशेषता है कि शब्दों के चयन में लोकव्यवहार को विशेष महत्त्व दिया गया है । 'अनेकार्थनाममाला' इसका पूरक अङ्ग है । कोषकार के अतिरिक्त धनजय कवि भी हैं। इनका द्विसन्धान' काव्य द्वयाश्रय-काव्यों में बड़ा प्रसिद्ध है। इस काव्य में श्लिष्ट पदों के द्वारा रामायण और महाभारत के कथानकों का विशद वर्णन प्रस्तुत किया गया है । इनका समय आठवीं शताब्दी का उत्तरार्थ निश्चितप्राय है। इस विषय में बीरसेन स्वामी द्वारा 'षट्खण्डागम' को धबला नामक टीका में 'जनेकार्थनाममाला' का उद्धृत एक श्लोक ही पर्याप्त प्रमाण माना जा १. दृष्टशिष्टप्रयोगोऽहं दृष्टव्याकरणत्रयः । अधीती सदुपाध्यायात् लिङ्गशास्त्रेषु पञ्चसु ॥ -शाश्वतकोप-आरम्भ का ६ शोक २. महाबलेन कविना वराहेण च धीमता। सह सम्यक् परामृश्य निर्मितोऽयं प्रयत्नतः ।। For Private And Personal Use Only
SR No.091001
Book TitleAdarsha Hindi Sanskrit kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamsarup
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages831
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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