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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१ ) अमरसिंह - सुप्रसिद्ध "नामलिङ्गानुशासन" कोष के रचयिता अमरसिंह की ख्याति कोषकर्ता के रूप में सबसे अधिक है । इनके नाम से ही यह ग्रन्थ अमरकोष प्रसिद्ध हो गया । इनसे पूर्व प्राचीन कोषकारों ने दो प्रकार की शैलियाँ अपनायी थीं । कतिपय कोष केवल नामों का ही निर्देश करते थे और कुछ को लिङ्गों के ही विवेचन को अपना मुख्य विषय मानते थे । अमरसिंह ने दोनों का समन्वय कर अपने कोष को सर्वाङ्गपूर्ण बनाया । तीन काण्डों में विभक्त कर इस ग्रन्थ को ' त्रिकाण्ड' संज्ञा भी दी गई। इसका उपविभाग 'वर्गों' के नाम से किया गया है । 'अमरकोष' पद्यबद्ध रचना है । 'अनुष्टुप् छन्द के १५३३ श्लोकों में यह रचना सम्पूर्ण हुई है । ग्रन्थ का छठा भाग नानार्थ के वर्णन में है । शेष भाग में समानार्थ शब्दों का निरूपण किया गया है । समानार्थ-भाग में एक विषय के वाचक नामों का एकत्र संकलन है । नानार्थ - खण्ड में अन्तिम वर्ण के अनुसार पदों का संग्रह है । अव्ययों का वर्णन एक स्वतन्त्र वर्ग में किया गया है। तथा ग्रन्थ के अन्त में लिङ्गों के साधक नियमों का उल्लेख किया गया है । अमरसिंह के समय का निर्णय भी एक समस्या बना हुआ है । इतना तो अवश्य निश्चय है कि यह ग्रन्थ छठी शताब्दी से पहले ही रचा गया था । गुणरात द्वारा चीनी भाषा में इसका अनुवाद किया जाना उस समय की पश्चिम (अन्तिम) अवधि है । इसकी लोकप्रसिद्धि का सबसे अधिक प्रमाण यह है कि इस पर लगभग ४० टीकायें लिखी गई हैं । इनमें क्षीरस्वामी और रामाश्रम ( भानुदीक्षित ) द्वारा लिखित टीकायें बहुत उपयोगी सिद्ध हुई हैं । इन दोनों में से रामाश्रमीका पदव्युत्पत्ति प्रदर्शन अधिक सूक्ष्म तथा परिनिष्ठित है । अमरसिंह बौद्ध थे । इनके समय की पूर्वसीमा २२५ ई० के आसपास निर्धारित की जाती है । कोष ग्रन्थों में अमरकोष का प्रचलन अद्यावधि सर्वाधिक है । संस्कृत के विद्यार्थियों को बाल्यावस्था में ही इसे कण्ठस्थ कराया जाता रहा । यह परम्परा अब भी थोड़ी-बहुत दिखाई पड़ती है । सरल भाषा एवम् अनुष्टुप् छन्द में विरचित होने के कारण इसे हृदयङ्गम करने में कठिनाई नहीं होती । अमरकोष के अतिरिक्त शब्द- ज्ञान का लघुभूत उपाय दूसरा कोई नहीं है । इस प्रकार अमरसिंह अपने पचाद्वर्ती कोषकारों के प्रेरणा-स्रोत बन गए । इसी कारण उनकी सरणि को अधिक प्रशस्त बनाने में आगे के कोषकार तत्पर होते हुए दिखाई पड़ते हैं । अमरसिंह के पश्चाद्वर्ती कोषकार — बाद के कोषकार शब्दों के वैशिष्टय का । निदर्शन कराने में बड़े सिद्धहस्त प्रतीत होते हैं उनके प्रकरण भले ही सीमित sa ferg उनका क्षेत्र अधिक विस्तृत है । कतिपय कोषकारों ने केवल नानार्थकोषग्रन्थों की ही रचना स्वतन्त्र रूप में की है, किन्तु उन्होंने शब्दों की सूक्ष्म For Private And Personal Use Only
SR No.091001
Book TitleAdarsha Hindi Sanskrit kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamsarup
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages831
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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