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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २० ) कात्य-इनके कोषग्रन्थ का नाम 'नाममाला' था। क्षीरस्वामी, हेमचन्द्र आदि ने इनका उल्लेख किया है । इनके कोष की विशेषता यह थी कि इन्होंने कहीं-कहीं अर्थ का वर्णनात्मक परिचय भी दिया है--- "क्षुद्रच्छिद्रसमुपेतं चालनं तितउ पुमान्" । इनका निश्चित समय ज्ञात नहीं हो सका। भागुरि--यह त्रिकाण्ड-कोष के रचयिता हैं। अमरसिंह ने 'त्रिकाण्ड' की प्रेरणा इन्हीं से प्राप्त की होगी। इन्होंने केवल समानार्थ शब्दों का ही उल्लेख किया है। व्याकरण के प्रसिद्ध ग्रन्थों में भागरि के मत का अनेक स्थलों पर उल्लेख मिलता है । विशेषतः हलन्त वाच, निश, दिश् आदि शब्दों को आकारान्त बनाने में इनके नाम का उल्लेख मिलता है "वष्टि भागुरिरल्लोपमवाप्योरुपसर्गयोः । आप चैव हलन्तानां यथा वाचा निशा दिशा"। सायण आदि वेदभाष्य-कर्ताओं ने इनके कोष-ग्रन्थ से पर्याप्त सहायता ली है। रत्नमाला के अज्ञात-नामा लेखक का उल्लेख सर्वानन्द ने अपनी "अमरकोष" की टीका में किया है । तदनुसार इस कोष के परिच्छेदों का वर्गीकरण लिङ्ग के आधार पर था । इसमें समानार्थ-शब्दों का चयन था। ___ अमरदत्त इन्होंने 'अमरमाला' नामक कोषग्रन्थ की रचना की। हलायुध ने अपने कोषग्रन्थ का उपजीव्य 'अमरमाला' को माना है । सर्वानन्द ने इस कोष से अनेक उद्धरण अपनी अमर-टोका में दिये हैं । इनका समय भी अनिश्चित ही है। वाचस्पति-यह सुप्रसिद्ध 'शब्दार्णव' कोष के रचयिता थे। यह 'अनुष्टपछन्द' में विरचित विशाल कोष था। इसकी विशेषता यह थी कि एक शब्द के विभिन्न रूपों का तथा वर्तनी का भी इसमें उल्लेख है। हेमचन्द्र ने इनके कोष से पर्याप्त सहायता ली है। इनका वास्तविक समय मी अज्ञात है। धन्वन्तरि-यह वैद्यक-निघण्टु के रचयिता हैं । वैद्यक निघण्टुओं में यह कोष सब से प्राचीन है। क्षीरस्वामी ने अपनी अमर-टीका में यह उल्लेख किया है कि अमरसिंह के 'अमरकोष' के वनौषधि-वर्ग का उपजीव्य यही कोष रहा है । विक्रम के नवरत्नों में इनका भी उल्लेख है । उस दृष्टि से तो यह भी अधिक प्राचीन है। महाक्षपणक-इनके नाम से दो कोष-ग्रन्थ हस्तग्रन्थों में उल्लिखित मिलते हैं । ये दोनों अनेकार्थ-ध्वनिमञ्जरी तथा अनिकार्थमञ्जरी नाम से प्रसिद्ध हैं । ये दोनों ग्रन्थ एक ही होंगे, क्योंकि अधिकतर टीकाकर्ताओं ने 'अनेकार्थमञ्जरी' नाम का ही उल्लेख किया है । 'रघुवंश' की टीका में वल्लभदेव ने 'अनेकार्थमञ्जरी' का अवतरण उद्धृत किया है। महाक्षपणक काश्मीरी थे। इनके समय का भी कोई निर्णय नहीं हो सका है। यदि यह भी विक्रम के नवरत्नों में से एक हों तो विक्रमादित्य अथवा चन्द्रगुप्त द्वितीय के राज्यकाल के आसपास इनकी स्थिति के विषय में अनुमान किया जा सकता है । For Private And Personal Use Only
SR No.091001
Book TitleAdarsha Hindi Sanskrit kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamsarup
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages831
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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