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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८ ) अधिक से अधिक वह सौ वर्ष तक जीता है। इसके अतिरिक्त आगे निरूपण करते हुए उन्होंने कहा कि विद्या की सार्थकता चार प्रकार से होती है( १ ) गुरुमुख से समझ लेते समय, ( २ ) मनन के समय, ( ३ ) दूसरों को सिखाते समय और ( ४ ) व्यवहार करने में - " एवं हि श्रूयते । बृहस्पति - रिन्द्राय दिव्यं वर्षसहस्रं प्रतिपदोक्तानां शब्दानां शब्दपारायणं प्रोवाच नान्तं जगाम । बृहस्पतिश्च प्रवक्ता, इन्द्रश्च अध्येता, दिव्यं वर्षसहस्त्र मध्ययनकाल:, न च अन्तं जगाम । किं पुनरद्यत्वे ? यः सर्वथा चिरं जीवति स वर्षशतं जीवति । चतुभित्र प्रकरारैविद्योपयुक्ता भवति आगमकालेन, स्वाध्यायकालेन प्रवचनकालेन व्यवहारकालेनेति । " अतः प्रायोगिक शब्दों के समाकलन को व्यावहारिक दृष्टि से उपयोगी समझ कोषकारों ने उन्हें ग्रन्थों के कर संस्कृत वाङ्मय के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा है । शब्दों के संग्रह करने में 'कोष' शब्द रूढ़ हो गया है । , रूप में प्रस्तुत इस प्रकार वैदिक काल में कोष 'निघण्टु' के नाम से विख्यात रहे । 'निघण्टु' से अभिप्राय उन वैदिक शब्दों के संग्रह से है, जिनमें संज्ञाशब्दों के साथ क्रियापदों को भी एकत्र कर लिया गया था । निघण्टु का उद्देश्य वैदिक शब्दों के अर्थं समझने में सहायता पहुँचाना भी रहा है। इसके विपरीत लौकिक 'कोषों' में अधिकतर संज्ञाशब्दों का समाकलन हुआ है । नामसंग्रह के अनन्तर परिशिष्टरूप में अव्ययों के अर्थ का संग्रह भी इन कोषग्रन्थों में उपलब्ध होता है । लौकिक कोष पद्यमय होने के कारण कविजनों के परिश्रम को कम करने में उपयोगी सिद्ध हुए हैं । फलतः कण्ठस्थ करने में सरलता होने के कारण इनका प्रचार होने में बड़ी सुविधा हुई है । अतः विद्यार्थियों को काव्यशिक्षा देने के साथ ही 'कोष' कण्ठस्थ कराने की परिपाटी रही है । अर्थ की दृष्टि से प्राचीन काल में कोषों का विभाजन दो प्रकार से किया गया था- - ( १ ) समानार्थक कोष तथा ( २ ) नानार्थक कोष । लिङ्ग-निर्धारण करने की समस्या को कोषकारों I बड़ी बुद्धिमत्ता से सुलझाया है । इसके लिये उन्होंने कई विधियाँ अपनाई हैं । कहीं-कहीं तो शब्दों के प्रथमान्त प्रयोग से उनका लिङ्ग-निर्देश किया है और कहीं 'पुं' 'स्त्री' 'क्लीब' आदि लिङ्गद्योतक शब्दों का प्रयोग कर इस विशिष्टता का परिचय दिया है । शब्दचयन के भी अनेक सिद्धान्त हैं । समानार्थक कोषों में विषयों के अनुसार शब्दों का संकलन कर पूरे कोषग्रन्थ को अनेक वर्गों में विभक्त कर दिया है। नानार्थ कोषों में अन्तिम वर्णों के अनुसार शब्दों का संकलन कर कान्त, खान्त, गान्त आदि शब्दों का चयन किया गया है । कहीं आदिम वर्णों को भी महत्त्व दिया गया है । कहीं आदिम तथा अन्तिम दोनों वर्णों को दृष्टि में रखकर शब्द चयन की प्रक्रिया सम्पन्न की गई है । For Private And Personal Use Only
SR No.091001
Book TitleAdarsha Hindi Sanskrit kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamsarup
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages831
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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