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पाठशालाओं में संस्कृत पढ़ने वाले छात्रों के लिए हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद करने में यह कोश अच्छा सहायक सिद्ध होगा--ऐसी मुझे पूर्ण आशा है । __ इस कोश ने केवल हिन्दी की ही नहीं, अपितु संस्कृत की भी श्रीवृद्धि की है, अतः दोनों भाषाओं के प्रेमियों की ओर से विद्वान् ग्रन्थकार धन्यवाद के पात्र हैं।
प्रो० इन्द्र विद्यावाचस्पति एम. पी.
( चन्द्रलोक, जवाहरनगर, दिल्ली ) हंसराज कालेज, दिल्ली के प्रो. रामसरूप एम. ए., एम. ओ. एल. ने अपने आदर्श हिन्दी-संस्कृत कोश का कुछ भाग मुझे दिखाया है। कोश में हिन्दी के तीस हजार शब्दों के व्युत्पत्ति-सहित संस्कृत-पर्याय दिये गये हैं। अभी तक ऐसे कोश का अभाव था। प्रो. रामसरूपजी का यह प्रयत्न उस अभाव की पूर्ति कर देगा। इसमें सन्देह नहीं कि इतनी ज्ञातव्य बातों से यह कोश अत्यन्त उपयोगी होगा।
श्री० दा० सातवलेकर
( अध्यक्ष, स्वाध्याय मंडल, पारडी जि० सूरत ) ___ आपका यह कोश संस्कृत सीखने वालों के लिए तथा संस्कृत शिक्षकों के लिए अत्यन्त उपयोगी होगा, इसमें सन्देह नहीं है ।
पं० ब्रह्मदत्त जिज्ञासु
( मोतीझील, वाराणसी) 'यह ग्रन्थ संस्कृत के छात्रों तथा अध्यापकों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगा। हिन्दी में संस्कृत बनाने वालों को बहुत लाभ होगा। इस विषय पर आगे काम करने वालों को भी इससे बहुत सहायता मिलेगी। इससे इस विषय में उत्तरोत्तर उन्नति का मार्ग खुलेगा। इस दृष्टि से इस ग्रन्थ की उपादेयता और बढ़ जाती है।'
प्रो० चारुदेव शास्त्री
एम. ए., एम. ओ. एल.
( पूर्व प्राध्यापक, डी. ए. वी. कालेज, लाहौर ) प्राध्यापकेन श्रीरामसरूपशास्त्रिणा प्रणीतो हिन्दी-संरकृतकोषो मया केचित्स्थले वालोचितः ! इदम्प्रथमः प्रयास इति प्रशस्यः। महानत्र शब्दराशिः संगृहीतः । प्रतिहिन्दीशब्दमनेक संस्कृतमभिधानमुपन्यस्तम् । तत्रोपन्यासेऽपि प्रसिद्धमपेक्ष्य विशिष्टानुपूर्वी समाश्रिता येनैतदुपयोक्तार: परपरतराछब्दान् विहाय पूर्वपूर्वतरान प्रयोश्यन्ते प्रसिद्धिं च नातिक्रमिष्यन्ति । सर्वस्मिन् भारते व्यवहारमवतीर्णायां हिन्धामीदृक्षः कोषोऽत्यन्तमपेक्षितोऽभूदिति स्थाने प्रयत्तं शास्त्रिवर्येण विदांवरेगा।
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