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( १४ )
वासुदेव द्विवेदी शास्त्री ( सार्वभौम संस्कृत प्रचार कार्यालय, वाराणसी) प्रो. रामसरूप शास्त्री द्वारा संकलित एवं सम्पादित "आदर्श हिन्दी-संस्कृत कोश" के द्वितीय संस्करण को देखकर हार्दिक प्रसन्नता हुई। हिन्दी-संस्कृत कोश के क्षेत्र में यही एक ऐसा कोश था जो आकार, शब्दसंख्या एवं उपयोगिता की दृष्टि से सर्वोत्तम था और इसीलिये इसका अभाव बहुत दिनों तक खटक रहा था। सैकड़ों जिज्ञासुओं को तो मैंने ही इस कोश की सूचना दी होगी पर जब उन्हें यह मालूम हो जाता था कि यह कोश सम्प्रति उपलब्ध नहीं है तो वे हार्दिक दुःख प्रकट करते थे और चाहते थे कि यह कोश किसी प्रकार उन्हें उपलब्ध हो जाय। आज माननीय शास्त्रीजी ने इसका पुनः सम्पादन तथा चौखम्बा विद्याभवन ने इसका प्रकाशन कर जो असंख्य लोगों की आकांक्षाओं की पूर्ति की है इसके लिये ये दोनों हार्दिक धन्यवाद के पात्र हैं। ___ यह कहने की आवश्यकता नहीं कि हिन्दी-संस्कृत कोश का सम्पादन संस्कृत-हिन्दी कोश के सम्पादन की अपेक्षा एक कठिन कार्य है । कारण कि आज की हिन्दी में अरबी, फारसी एवं अंग्रेजी के भी बहुत से शब्द प्रचलित हो गये हैं। इसके अतिरिक्त देशी तथा लोकभाषाओं के शब्दों की भी मंख्या कुछ कम नहीं है। फारसी, अरबी तथा अंग्रेजी के पारिभाषिक शब्दों का एक विशाल भण्डार अलग ही है। इन शब्दों के पर्यायवाची शब्द पुरानी संस्कृत में नहीं मिलते अतः उनके लिये नये संस्कृत शब्दों का निर्माण करना पड़ता है जो साधारण विद्वान से संभव नहीं है।
यही स्थिति उन सभी शब्दकोशों में पाई जाती है जो अंग्रेजी, बँगला, मराठी, गुजराती, तमिल एवं तेलगू आदि भाषाओं से संस्कृत में लिखे गये हैं। मेरे कार्यालय में ऐसे अनेक कोश हैं। इन शब्दकोशों में भी पर्याप्त संख्या में नये संस्कृत शब्द बनाये गये हैं।
अब कठिनाई यह है कि विभिन्न कोशों में जो नये शब्द बनाये गये हैं उनमें एकरूपता नहीं है। लेखकों ने अपने अपने ज्ञान एवं रुचि के अनुरूप शब्दों का निर्माण किया है । किन्हों-किन्हीं कोशों में उत्तर एवं दक्षिण भारत की प्रादेशिकता का भी प्रभाव परलक्षित होता है। ऐसी स्थिति में नवीन संस्कृत शब्दों से अन्य भाषाओं के तत्तत् शब्दों के तत्तद अर्थों का सहज बोध होना या कराना वक्ता एवं श्रोता दोनों के लिये असंभव या कठिन होता है। संस्कृत के आधुनिक लेखको एवं वक्ताओं के लिये यह एक समस्या है जिसका समाधान होना परम आवश्यक है। ___ प्रस्तुत कोश में शास्त्रीजी ने उक्त कठिनाइयों के निवारण के लिये भो प्रयास प्रयत्न किया है जो उनकी भूमिका पढ़ने से अच्छी तरह विदित होता है। यदि कोई संस्था या शब्द निर्माणसमिति विभिन्न कोशकारों द्वारा नवनिर्मित संस्कृत शब्दों के अखिल भारतीय विद्वत्समाज की दृष्टि से सर्वसामान्य और सर्वत्र समानरूप से प्रचलित करने की योजना बनाये तो उसकी सफलता में इस कोश से बड़ी सहायता मिल सकती है। परन्तु जब तक इस प्रकार की कोई योजना नहीं बनती, और जिसके बनने की संभावना भी कम ही दीखती है, तब तक इसी कोश को आदर्श कोश माना जा सकता है। इस दृष्टि से इसका "आदर्श हिन्दी-संस्कृत कोश" नाम मैं सर्वथा यथार्थ मानता हूँ।
संस्कृत का प्रत्येक विद्वान् एवं विद्यार्थी इस कोश की एक प्रति अपने पास रखकर और इससे सहायता लेकर संस्कृत बोलने एवं लिखने में अबाधगति से आगे बढ़ सकता है, इसमें कोई
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