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कोश के अन्त में सात परिशिष्ट दिये गये हैं। प्रथम में संस्कृत सुभाषितों के हिन्दी-रूपान्तर, द्वितीय में हिन्दी लोकोक्तियों के संस्कृत-पर्याय, तृतीय में अंग्रेजी-संस्कृत शब्दावली, चतुर्थ में छन्द-परिचय, पंचम में संस्कृत साहित्यकार परिचय, पत्र में सोदाहरण लौकिकन्याय और सप्तम में भौगोलिक परिचय है। इनकी उपयोगिता के विषय में कुछ कहने की आवश्यकता नहीं । इन पर किया हुआ क्षणिक दृष्टिपात स्वयं ही इनकी उपादेयता का समर्थन करेगा। केवल अंग्रेजी संस्कृत-शब्दावली के सम्बन्ध में कुछ शब्द अवश्य अपेक्षित हैं। जब से देश स्वतन्त्र हुआ है, संविधान, राजनीति, प्रशासन आदि विषयों के अंग्रेजी शब्दों के हिन्दी पर्याय बताने के लिए अनेक ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं-कुछ सरकारों की ओर से, कुछ संस्थाओं की ओर से और कुछ पुस्तकविक्रेताओं की ओर से। अनुवादक महानुभावों ने कुछ विशिष्ट सिद्धान्तों के अनुसार उन शब्दों के हिन्दी-अनुवाद प्रस्तुत किये हैं। इस प्रकार इस संक्रमणकाल में जनता के समक्ष एक-एक अंग्रेजी-शब्द के लिए अनेक हिन्दी-पर्याय उपस्थित हो गये हैं। उक्त परिशिष्ट में मैंने यत्न किया है कि अनूदित शब्दों में से, उपयुक्ततम शब्द को संस्कृत में स्वीकृत कर लिया जाए, परन्तु जहाँ उनसे सन्तोष नहीं हुआ, वहाँ स्वनिर्मित शब्द देने में भी संकोच नहीं किया। ऐसे शब्दों के साथ मैंने (*) चिह्न लगा दिया है और उनकी सदोषता-निर्दोषता का दायित्व मुझी पर है। जैसे-Gazette के लिए सूचनापत्र, वार्तायन, राजपत्र आदि शब्दों की रचना हुई है। मैंने इनमें से केवल 'राजपत्र' को ग्रहण किया है। Provident Fund के लिए भविष्यनिधि, संभरणनिधि, संचितनिधि, संचितकोष और निर्वाहनिधि शब्द चल रहे हैं, मुझे उनमें से 'भविष्यनिधि' ही उपादेयतम प्रतीत हुआ है। Affiliation के लिए 'संबद्धीकरण' भी लिखा गया है और 'सम्बद्धन' भो। मुझे संस्कृत का 'सम्बन्धनम्' प्रियतम लगा और मैंने उसे ले लिया। District Board के लिए जिमंडली, मंडलपरिषद, जिलापालिका, जिलाबोर्ड, मांडलिक-समिति, मंडलपरिषद् शब्द प्रस्तुत किये जा चुके हैं। परन्तु जब संविधान में 'बोर्ड'
लए मंडली' और 'डिस्टिकट के लिए जिला का वैकल्पिक रूप मंडल स्वीकृत किया है तो मुझे District Board के लिए संस्कृत में मंडल-मंडली अपना लेने में कोई अड़चन नहीं हुई। इसी प्रकार 'टिकट' जैसे व्यापक और सर्वविदित शब्द के लिए कोई विकट शब्द बनाना मुझे "अच्छा नहीं लगा और मैंने Booking office के लिए 'टिकटगृहम्' को ही उचित समझा।
जो विदेशी शब्द हमारे देश के कोने-कोने में समझे जाते हैं और आकार-प्रकार की दृष्टि से “भी संस्कृत में समा सकते हैं उन्हें अपनाने में संकोच न करना ही उचित प्रतीत होता है। ___ कहीं-कहीं पाठकों के सुखबोधार्थ सन्धि-नियमों की जानबूझ कर उपेक्षा की गई है और मुद्रगसौकर्यार्थ अनुनासिक वर्णों ( ङ, अ , णन, म् ) के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग किया गया है। ___इस कोश के संकलन में किन-किन महानुभावों की कौन-कौन-सी कृतियों से सहायत:
ली गई है, यह ठीक-ठीक बताना मेरे लिए असम्भव है। यदि दुर्भाग्यवश देश-विभाजन न हुआ होता और पंजाब विश्वविद्यालय तथा डी. ए. वी. कालेज लाहौर पुस्तकालयों की पुस्तके मेरे समक्ष होती तो मैं इस कार्य को यथावत् कर देता। फिर भी जिन ग्रंथों का मुझे निश्चयपूर्वक स्मरण है, उनका उल्लेख कोश के अंत में ग्रंथसूची में कर दिया है। अस्तु, स्मृत वा विस्मृत उन सभी पुस्तकों के लेखकों वा सम्पादकों का मैं कृतज्ञ हूँ जिनकी सहायता से यह कार्य सम्पन्न हो सका है। मैं विश्वेश्वरानन्द वैदिक शोधसंस्थान, होशियारपुर, के संचालक, गुरुवर, आचार्य "विश्वबन्धुजी शास्त्री, एम. ए., एम. ओ. एल., ओ. डी.' ए (फ्रांस) के-टी. सी. टी. (इटली), सदस्य संस्कृत आयोग, का हार्दिक आभारी हूँ, जिन्होंने इस कोश का प्राकथन लिखकर मुझे उपकृत किया है। वस्तुतः उन्हीं के उत्साहमय जीवन से प्रेरणा पाकर मैं इस बृहत्कार्य को एकाकी करने में प्रवृत्त हुआ; अन्यथा मेरी अवस्था तो
तितीर्घर्दुस्तरं मोहादुडुपेनास्मि सागरम् । (रघुवंश ११२ ) नन्ही सी नौका से समुद्र पार करने के इच्छुक मूढजन की-सी ही थी।
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