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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तावना (प्रथम संस्करण) संस्कृत का अध्ययनाध्यापन करते समय और कभी हिन्दी-शब्दों के संस्कृत-पयायो का जिज्ञासा के समय अनेक बार हिन्दी-संस्कृत-कोश की आवश्यकता प्रतीत होती थी। बाजार में कोई भी ऐसा कोश प्राप्य न था जो स्कूलों, कालेजों, शुरुकुलों, ऋषिकुलों आदि की उच्च कक्षाओं के विद्यार्थियों तथा संस्कृताध्ययन के इच्छुक प्रौढ़ सज्जनों और अध्यापकों की आवश्यकताएँ पूर्ण कर सके। यह देखकर दुःख भी होता था और आश्चर्य भी कि सात समुद्र पार से आई हुई अंग्रेजी भाषा के कुछ लाख ज्ञाताओं के लिए तो अंग्रेजीसंस्कृत-कोश प्रकाशित हो चुके हैं परन्तु करोड़ों हिन्दी-प्रेमियों के पास ऐसा कोई कोश नहीं जिससे वे संस्कृताध्ययन में सहायता प्राप्त कर सकें। संस्कृतानुराग और उक्त अभाव की प्रबल प्रेरणा से मैं १९४३ ई. में कोश-संकलन में लग गया और लगभग चार वर्ष के परिश्रम से इस बृहत्कार्य को सम्पन्न कर पाया। देश का विभाजन न होता तो सम्भवतः यह कोश दस वर्ष पूर्व ही प्रकाशित हो जाता, परन्तु परिस्थितियों की प्रतिकूलता के कारण यह अब प्रकाशित हो रहा है-'दैवी विचित्रा गतिः'। जिन दिनों में कोश का संकलन आरम्भ करने को था उन दिनों हिन्दी-उर्दू हिन्दुस्तानी का प्रश्न जोर-शोर से छिड़ा हुआ था। प्रत्येक भाषा के प्रमी स्व-स्व पक्ष की पुष्टि के लिए अनेक युक्तायुक्त युक्तियाँ प्रस्तुत करते थे। तब मेरे संमुख प्रश्न यह उठा कि मूल ( अनूद्य ) शब्दों में विशुद्ध हिन्दी के ही शब्द रखे जाएँ या विदेशी शब्द भी। सोच-विचार के पश्चात् मैंने यही उचित समझा कि इसके मूल-शब्दों में फारसी, अरबी, तुर्की, अंग्रेजी आदि विदेशी भाषाओं के भी प्रचलित शब्द अवश्य रखने चाहिए। उसी निश्चय का परिणाम यह है कि कोश के प्रायः प्रत्येक पृष्ठ पर पाँच-सात विदेशी शब्द, जो शताब्दियों के प्रयोग से स्वदेशी बन गये हैं, आपको मिल ही जाएँगे। इसका सुफल यह होगा कि हिन्दी के राष्ट्रभाषा बन जाने और परिणामतः प्रत्येक भारतीय के हिन्दी से परिचित हो जाने के कारण उन अन्यमतावलम्बियों को भी संस्कृत सीखने में अधिक सुविधा हो जाएगी, जिनकी भाषाओं के प्रचलित शब्द इस कोश में संगृहीत कर लिये गये हैं। मूल शब्दों के चुनाव के समय दूसरी समस्या पारिभाषिक शब्दों की थी। प्रत्येक कला और विज्ञान से सम्बन्धित सहस्रों पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग प्रायः उन्हीं विषयों के विद्यार्थियों और अध्यापकों तक ही सीमित रहता है। प्रस्तुत कोश में उन सबका संकलन न सम्भव था, न वांछनीय। इसीलिए मैंने भौतिकी, रसायन, भूगोल, गणित, ज्योतिष, वैद्यक आदि के उन्हीं अत्यन्त प्रसिद्ध शब्दों को संगृहीत किया है जो जन-सामान्य या सामान्य शिक्षित जनों द्वारा प्रतिदिन प्रयुक्त होते है । कोश के मूल शब्दों की संख्या लगभग ३०००० है जिनमें ४००० के लगभग तथाकथित विदेशी शब्द, पारिभाषिक शब्द तथा मुहावरे भी सम्मिलित हैं । कई कोशों में सम-रूप विभिन्न शब्द एक ही शब्द के नीचे मुद्रित रहते हैं। प्रस्तुत कोश में वैसा नहीं किया गया। कारण, जव स्रोत ( आकर-भाषा ) और व्युत्पत्ति पृथक-पृथक् हो तो शब्दों के पाक्य में सन्देह नहीं रहता। ऐसी दशा में उन्हें, केवल रूपसाम्य के कारण, एक ही शब्द के अन्तर्गत रखना मुझे उचित नहीं अँचा। ऐसे समरूप शब्दों के ऊपर १, २, ३, ४ आदि के चिह्न लगा दिये गये हैं जिससे उनमें से किसी की ओर निर्देश करते समय कठिनता न हो; उदाहरणार्थ 'आम' और 'आया' शब्द देखिये । इस कोश में प्रत्येक मूल शब्द को तो स्वतंत्र स्थान दिया गया है परन्तु उससे बने हुए समस्त शब्दों वा मुहावरों को अधिकतर मूल शब्दों के नीचे ही For Private And Personal Use Only
SR No.091001
Book TitleAdarsha Hindi Sanskrit kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamsarup
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1979
Total Pages831
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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