SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लिए इनकी उपादेयता तो है ही । राम युद्धभूमि में अपने सामाजिक कर्म सौंदर्य में सुशोभित हैं : श्रम बिंदु मुख राजीव लोचन अरुन तन सोभित कनी । वीरता का सौंदर्य-चित्र है, संघर्ष की सार्थकता प्रमाणित करता : सिर जटा मुकुट प्रसून बिच बिच अति मनोहर राजहीं जनु नीलगिरि पर तड़ित पटल समेत उडुगन भ्राजहीं भुजदंड सर कोदंड फेरत रुधिर कन तन अति बने जनु रायमुनीं तमाल पर बैठीं विपुल सुख आपने । राम का अयोध्या लौटना एक साथ कई ध्वनियों से संपन्न है । भरत की भायप भक्ति, सीता की पवित्रता, लक्ष्मण की निष्ठा, हनुमान का विवेक, वानरी सेना की सेवा सब प्रमाणित हुए। सबसे ऊपर प्रमाणित हुआ राम का संघर्षशील व्यक्तित्व जो अन्याय-अत्याचार से टकराया और विजयी हुआ, सामाजिक कल्याण के लिए । इसी को राम का रामत्व कहा गया : धर्म के सेतु, जगमंगल के हेतु भूमि भार हरिबे को अबतारु लिए नर को (विनय उत्तर. पद 122 ) । मानस के उत्तरकांड में रामराज्य का वर्णन एक प्रकार से राम के व्यक्तित्व का सार - अंश भी है, जैसे गीता में कृष्ण का विश्वरूप, एक में कर्म प्रधान है, दूसरे में विचार । तुलसी का कौशल यह कि वे रामराज्य के माध्यम से राम के व्यक्तित्व को सामाजिक व्याप्ति देते हैं। राम के अयोध्या आगमन को तुलसी ने पूरी सांस्कृतिक उत्सवधर्मिता के साथ प्रस्तुत किया है : दधि दुर्वा रोचन फल फूला, नव तुलसी दल मंगल मूला । यह विशिष्ट मांगलिक क्षण है : राका ससि रघुपति पुर सिंधु देखि हरषान, जैसे पूर्णिमा के चंद्रमा को देखकर समुद्र का उल्लास | संलग्नता से तुलसी ने इसका वर्णन किया है, लोकोत्सव के रूप में : जहँ तहँ नारि निछावरि करहीं, देहिं असीस हरष उर भरहीं । माताओं की स्थिति है : जनु धेनु बालक बच्छ तजि गृह चरन बन परवस गईं। साथियों की विदा के प्रसंग में सबसे अंत में निषाद है, जिससे राम कहते हैं : तुम्ह मम सखा भरत सम भ्राता, सदा रहेहु पुर आवत जाता । राम की इस समदर्शिता के क्रम में रामराज्य का वर्णन आरंभ होता है : राम राज बैठे त्रैलोका, हर्षित भए गए सब सोका । रामराज्य का यह वर्णन दानव सभ्यता के विकल्प रूप में भी देखा जा सकता है, जैसे राम वैकल्पिक युगनायक । संभव है इसकी कुछ धारणाओं से असहमति हो, जैसे वर्णाश्रम व्यवस्था का पालन, अथवा कुछ प्रसंगों की उपादेयता में संदेह हो, पर तुलसी ने इसे अपनी अवधारणाओं से रचा। उल्लेखनीय है कि कम रचनाएँ होती हैं, जो ऐसा रचना - स्वप्न निर्मित कर सकें, वह भी एक कठिन समय में । तुलसी ने अपने संकल्पी साहस से इसे संभव किया, इसकी सीमाएँ समय की सीमाएँ भी हो सकती हैं, पर इसके सांस्कृतिक आशय को सराहना होगा। रामराज्य के दृश्य में सामाजिक-सांस्कृतिक समता का जो उदात्त मूल्य-संसार है, वह वरेण्य है : दैहिक दैविक भौतिक ताप का विनाश, व्यक्तियों में पारस्परिक प्रेम-भाव : नहिं दरिद्र कोउ तुलसीदास : सुरसरि सम सब कहँ हित होई / 205
SR No.090551
Book TitleBhakti kavya ka Samaj Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremshankar
PublisherPremshankar
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy