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________________ रचना - स्तर पर स्वीकार की और उसे वाणी दी । बालकांड में ही उस रामराज्य की भूमिका बना दी जाती है, जिसे राम की संघर्षगाथा से गुज़ारकर लंकाकांड में राम-विजय द्वारा स्थापित किया गया और अयोध्या लौटने पर उसका वर्णन विस्तार से किया गया। पर रामराज्य की स्थापना सरलता से नहीं होती, ऐसा होता तो घोषणाएँ, वक्तव्य, दिवास्वप्न ही पर्याप्त होते। पूरे संघर्ष से गुजरकर ही वह रामराज्य लाया जा सकता है, जिसकी परिकल्पना तुलसी ने की और जिसे आधुनिक समय में महात्मा गांधी का अधूरा स्वप्न कहा जा सकता है । जहाँ-जहाँ राम जाते हैं, अपने व्यक्तित्व से परिवेश को बदल देते हैं, यह कोई चमत्कार नहीं है, वह उनके शील-स्वभाव की परिणति भी है । यद्यपि तुलसी की चेतना में उपास्य राम भी विद्यमान हैं जिसका स्वाभाविक प्रभाव रचनाशीलता में देखा जा सकता है जैसे चित्रकूट का दृश्य है : जब तें छाइ रहे रघुनायक, तब तें भयउ बनु मंगलदायुक । प्रकृति और मनुष्य में राम के संसर्ग से यह रूपांतरण कवि की मूल्य- कल्पना का ही एक अंश है। एक विराट रूपक के द्वारा तुलसी ने रामकथा की परिकल्पना की : निर्मल मानसरोवर है जिसके सात कांड, सात सोपान हैं । इसका पूरा रूपक महाकवि ने बाँधा है - लहर, कमल से लेकर काग-बलाक तक । एक प्रकार से पूरी राम कथा का संकेत यहाँ है और कहा गया कि यह मूल्य-निष्पादित है : काम कोह मद मोह नसावन, बिमल बिबेक बिराग बढ़ावन । भरत के चरित्र को सराहते हुए तुलसी ने सुकीर्ति की सरिता के लिए कहा कि छहों ऋतुओं में उसकी शोभा है । रामराज्य का संकेत करते हुए कहा कि वह सर्वोपरि है : राम राज सुख बिनय बड़ाई, बिसद सुखद सोइ सरद सुहाई । रामराज्य को तुलसी ने शरद ऋतु कहा, जो निरभ्र आकाश की प्रतीक है । किष्किंधाकांड में राम लक्ष्मण से शरद ऋतु का वर्णन करते हुए कहते हैं : सरिता सर निर्मल जस सोहा, संत हृदय जस गत मद मोहा। विकारों पर विजय से उच्चतर मूल्य-संसार स्थापित होता है और रामराज्य इसका प्रतीक है । I राम कथा में रामराज्य के संकेत कई स्थलों पर हैं, जहाँ विकारों से संघर्ष करते हुए उच्चतर धरातल पर पहुँचने का प्रयत्न है और यह संघर्ष बाहरी भी है, भीतरी भी । दानवों से संघर्ष को दो पृथक मूल्य-दृष्टियों के रूप में देखना अधिक प्रासंगिक होगा । इस दृष्टि से राम-रावण संघर्ष दो विरोधी मूल्यचिंताओं का संघर्ष है और काव्यसत्य की प्रतिष्ठा के लिए राम की विजय आवश्यक है, जिससे मूल्य-संसार की स्थापना भी होती है । राम-रावण के निणायक युद्ध में विभीषण की चिंता देखकर, राम ने कहा कि जिस रथ से युद्ध जीता जाता है, वह मूल्यनिर्मित होता है जिसका निर्माण शौर्य, धैर्य, सत्य, शील, बल, विवेक, दम आदि से होता है : महाअजय संसार रिपु जीति सकइ सो बीर, जाकें अस रथ होइ दृढ़ सुनहु सखा मति धीर । संभव है इसके कुछ मूल्य व्यावहारिक न प्रतीत हों और बदलते हुए समय के इतिहास-च में इनकी प्रासंगिकता में संदेह किया जाय, पर उच्चतम मूल्यसंसार की स्थापना के -चक्र 204 / भक्तिकाव्य का समाजदर्शन
SR No.090551
Book TitleBhakti kavya ka Samaj Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremshankar
PublisherPremshankar
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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