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________________ सत्ताइस अहा आदि। 'आखिरी कलाम' की चौपाई भी उद्धृत की जाती है, जिसके भिन्न-भिन्न अर्थ लगाए गए हैं : भा औतार मोर नौ सदी, तीस बरिख ऊपर कवि बदी। जायसी की रचनाएँ-पद्मावत, चित्ररेखा, अखरावट, आखिरी कलाम, कहरानामा हैं और कन्हावत की प्रामाणिकता संदिग्ध है। पर पद्मावत उनकी प्रतिनिधि कृति है, कवि की कीर्ति का आधार । जायसी सूफी संप्रदाय से संबद्ध थे, यह निर्विवाद है क्योंकि रचनाओं के भीतर उसके वैचारिक तत्त्व मौजूद हैं। इसी के साथ यह भी ध्यान में रखना होगा कि वे खेती-किसानी के व्यक्ति थे, जिस अनुभव का प्रयोग उन्होंने अपने काव्य में किया है। जायसी को केवल सफी कवि के रूप में विवेचित करने से उनकी प्रतिभा के साथ पूर्ण न्याय नहीं हो पाता। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने मत-सिद्धांत को स्वीकारते हुए भी महाकवि को सही आलोचनात्मक प्रस्थान दिया और उनके प्रेम पंथ को रेखांकित किया : ‘जायसी एकांतिक प्रेम की गूढ़ता और गंभीरता के बीच-बीच में जीवन के और-और अंगों के साथ भी उस प्रेम के संपर्क का स्वरूप कुछ दिखाते गए हैं, इससे उनकी प्रेम-गाथा पारिवारिक और सामाजिक जीवन से विच्छिन्न होने से बच गई है' (जायसी ग्रंथावली : भूमिका, पृ. 29)। आचार्य शुक्ल ने जायसी को सूफी कवि के रूप में देखा, इसलिए लोकोत्तर में लोक का प्रवेश देखा, पर स्थिति यह भी है कि कवि लोक से लोकोत्तर का संकेत भी देता है। जायसी के समाजदर्शन की पहचान के लिए यह एक प्रासंगिक प्रश्न है कि दर्शन अथवा विचारधारा तथा रचना के अंतस्संबंधों का स्वरूप क्या होता है ? जायसी के संदर्भ में इस चर्चा के पूर्व, विजयदेव नारायण साही विचार और रचना का प्रश्न व्यापक स्तर पर उठा चुके थे (मार्क्सवादी समीक्षा और उसकी कम्युनिस्ट परिणति : 'आलोचना' अक्टूबर 1953)। साही अपनी पुस्तक 'जायसी' (व्याख्यान 1982, प्रकाशन 1983) में उन्हें 'हिंदी का पहला विधिवत्' कवि मानते हैं, यह स्वीकारते हुए भी कि कबीर की क्षमता ने जायसी को संभव किया। पर वे संत अधिक थे, जबकि जायसी कवि अधिक हैं, उनके शब्दों में 'मूलतः कवि।' मध्यकाल में संत और कवि की समन्विति स्थिति को देखते हुए यह वक्तव्य विवादास्पद कहा जा सकता है, पर जायसी साही के प्रिय कवि हैं, और उन्होंने अंतरंग विवेचन से उनके काव्य-मर्म को उद्घाटित किया है, आधुनिक दृष्टि से। उनका विचार है कि 'सूफीमत, सूफी संप्रदाय और सूफी संतपन का घेरा जायसी और उनके व्यक्तित्व के चारों ओर इस तरह डाल दिया गया है कि उनका कवि-व्यक्तित्व धुंधला पड़ गया है' (जायसी, पृ. 4)। इसीलिए वे दर्शन और रचना का सैद्धांतिक प्रश्न उठाते हुए कहते हैं कि 'पद्मावत अपनी मूल प्रवृत्ति में एक त्रासदी है, विराट ट्रेजिडी, विशाल मानवीय करुणा से संपन्न।' बौद्धिक सघनता और वैचारिक प्रतिबद्धता में अंतर करते हुए साही कहते हैं कि 'सारे वाद और मत-मतांतर जायसी के चारों ओर वातावरण में फैले हुए थे।...जायसी इनके प्रति खुले हुए हैं। लेकिन प्रचलित मान्यताओं के इस पुंज का उपयोग अब मलिक मुहम्मद जायसी : पेम छाँड़ि नहिं लोन किछु / 111
SR No.090551
Book TitleBhakti kavya ka Samaj Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremshankar
PublisherPremshankar
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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