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________________ 1 सूफ़ी सिद्धांतों को लेकर विद्वानों ने पर्याप्त विचार-विमर्श किया है । इस्लाम के उदार पंथ को सूफी संप्रदाय कहा गया और यह विवाद भी चला कि यह बारा है अथवा बेशरा अर्थात् कुरानशरीफ़ के अनुसार है, अथवा नहीं। सूफियों के फकीरी सादे जीवन से उन्हें समाज में व्यापक स्वीकृति मिली और सूफ़ी शब्द से ही सरल जीवनचर्या का बोध होता है, जहाँ सदाचार का आग्रह है । विद्वानों ने सूफी संप्रदाय का संबंध शामी विचारधारा से स्थापित किया है जो पैग़म्बर के निधन के अनंतर मक्का में साधनारत पुजारियों ( अशावी सफा) द्वारा प्रवर्तित हुई । सफा से शुचिता, पवित्रता का बोध होता है और सूफियों ने कुरानशरीफ़ की उदार व्याख्या से अपने पंथ का निर्माण किया । आचरण पर बल देते हुए उन्होंने सांसारिक वस्तुओं के त्याग का आग्रह किया, जो सामंती समाज के भोग-विलास की अस्वीकृति है । प्रमुख सिद्धांतों के रूप में सूफी संप्रदाय एकेश्वरवाद पर आधारित है, जहाँ परमात्मा 'आकाश और पृथ्वी का प्रकाश' माना गया। यह दृश्यमान जगत् परमात्मा की छवि है, जिसे बिंब - प्रतिबिंब भाव भी कहा गया। ईश्वर अलहक्क है- परम सत्य और उससे एकत्व मनुष्य की अभीप्सा है। ईश्वर परम सत्ता है, परम सौंदर्य और परम कल्याण भी, इसलिए उसकी ओर उन्मुख अथवा मुखातिब होना चाहिए । इन्सानुल कामिल अथवा पूर्ण मानव इसी प्रकार बना जा सकता है और यह वर्ग ईश्वर अथवा खुदा और साधारण मानव के बीच सेतु का कार्य करता है। सूफियों में गुरु का महत्त्व है क्योंकि वह चिनगारी जन्माता है, परम सत्य की प्राप्ति के लिए - वह पथप्रदर्शक है, विवेक उपजाने वाला । परम लक्ष्य है- अलहक्क अथवा परम सत्ता से एकमेव होना । यह साधना का मार्ग है, जिसके कुछ चरण हैं - क्रमिक प्रयत्न के रूप में । ईश्वर-प्राप्ति लिए अहं का विनाश ( हस्ती का फ़ना होना) ज़रूरी है क्योंकि इसी के बाद 'बका' अथवा उच्चतर गुणों का प्रवेश रूह ( उच्च आत्मा) में होता है। सूफियों का आग्रह प्रेम पर है, जिससे खुदा मिलते हैं और उनमें हृदय पक्ष की प्रधानता है, जिसे कल्ब कहा गया, जो पवित्र होना चाहिए । मारिफ़ अथवा सच्चा ज्ञान प्रेम-पंथ से मिलता है, जिसमें स्वयं को तिरोहित करना पड़ता है। सूफ़ियों में लोक से लोकोत्तर तक जाने का जो प्रेम मार्ग है, उसने रचनाशीलता को बहुत प्रेरणा दी और सूफ़ियों के प्रेम पंथ पर विद्वानों ने विस्तार से विचार करते हुए कहा है कि यह आध्यात्मिक प्रक्रिया है (आर. ए. निकल्सन : द मिस्टिक्स ऑफ़ इस्लाम, पृ. 73 ) । जायसी को प्रायः सूफी काव्य-परंपरा में रखकर देखा गया है। जीवन - रेखाएँ बताती हैं कि मलिक मुहम्मद जायसी का जन्म 1464 ई. में अवध जनपद के जायस स्थान पर हुआ : ‘जायसनग़र मोर अस्थानू' ( आखिरी कलाम) । अमेठी में जायसी की कब्र हिंदू-मुसलमान दोनों की श्रद्धा पाती आई है, जो कवि के उदार पंथ की स्वीकृति है । पद्मावत में कुछ जीवनी - सूत्र हैं : जायसनगर धरम अस्थानू; एक नयन कवि मुहम्मद गुनी; गुरु मोहदी खेवक में सेवा; सेरसाहि देहली-सुल्तानू; सन् नवसै 110 / भक्तिकाव्य का समाजदर्शन
SR No.090551
Book TitleBhakti kavya ka Samaj Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremshankar
PublisherPremshankar
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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