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________________ भी जायसी करते हैं. तो उनका उद्देश्य केवल कथा के विशिष्ट संदर्भ में अधिक जागरूक, अधिक संवेद्य, अधिक घनीभूत बनाना ही होता है। पद्मावत की कथा अपनी समरस तन्मयता के साथ आगे बढ़ती जाती है। विचारों या वादों के टुकड़े उससे जुड़कर केवल संपूर्ण भावात्मक संश्लेषण को अधिक तीव्र बनाते रहते हैं। (वही, पृ. 67)। जायसी के पूर्व प्रेमाख्यान-परंपरा थी, सूफी कविता भी, और उन्होंने इससे प्रेरणा पाई। पद्मावत के कथानक को लेकर इतिहास-कल्पना की दुहरी भूमिका का उल्लेख भी किया जाता है कि पूर्वार्द्ध कल्पित है और उत्तरार्ध में इतिहास की सामग्री का उपयोग। पर इस प्रकार का द्वैत रचना को दुर्बल करता है, यदि कवि-प्रतिभा में संयोजन की क्षमता न हो। समाहार, संयोजन तो प्रतिभा का कौशल है ही जो रचना को कला-कृति का रूप देता है, नहीं तो सब कुछ बिखरा-बिखरा होगा। कला में इसे अन्विति का कौशल कहा जाता है और रचना को उसकी समग्रता में देखने का आग्रह किया जाता है। अलाउद्दीन खल्जी इतिहास में है और मेवाड़ के राजा रतनसिंह तथा उनकी रूपवती रानी पद्मिनी का उल्लेख भी किया जाता है। पर ऐसा प्रतीत होता है कि लोकगाथा रूप में यह कथा प्रचलित थी कि अलाउद्दीन ने पद्मिनी को पाने का प्रयास किया, जिसका उपयोग जायसी ने किया है। जायसी सल्तनत काल और मुगलकाल के संधिस्थल पर मौजूद थे और पद्मिनी की कथा उस समय प्रचलित रही होगी। पद्मावती के लिए पदमिनी नाम का प्रयोग जायसी ने किया है : सिंघलदीप पदमिनी रानी/रतनसेन चितउर गढ़ आनी (स्तुति खंड) 'मानसरोदक खंड' के आरंभ में पद्मावती है : पद्मावति सब सखी बुलाई, पर इसी क्रम में उसे पदमिनी कहा गया है : सरवर रूप पदमिनी आई। पद्मावत नामकरण है, इसलिए आदि से अंत तक पद्मावती ही प्रमुख है। अंत में पद्मावती-नागमती सती खंड है, फिर उपसंहार : कहँ सुरूप पद्मावति रानी। जायसी सर्जनात्मक कल्पना से, इतिहास तथा लोकगाथा का संयोजन करते हैं, और कथा को मार्मिक संपन्नता तथा चरित्रों को व्यक्तित्व देते हैं। भारत में सूफी प्रेमाख्यानों की समृद्ध परंपरा है जिससे मध्यकालीन सांस्कृतिक-संवाद का बोध होता है। चंदायन (1379 : मुल्ला दाऊद), मृगावती (कुतुबन), पद्मावत (जायसी), मधुमालती (मंझन), चित्रावली (उसमान), ज्ञानदीप (शेखनबी), हंसजवाहर (कासिम शाह), इंद्रावती, अनुराग बाँसुरी, यूसुफजुलेखा (शेख निसार) से लेकर नूरजहाँ (1905 : ख्वाज़ा अहमद) तक की लंबी सूची है। श्याममनोहर पाण्डेय, रामपूजन तिवारी, सरला शुक्ल, शिवसहाय पाठक आदि विद्वानों ने इस दिशा में अनुसंधान कार्य किया है। जायसी सूफ़ी काव्य परंपरा में इस दृष्टि से विशिष्ट हैं कि वे संश्लिष्ट व्यक्तित्व का परिचय देते हैं। उनके पास समृद्ध लोकानुभव है, जिसका उपयोग वे रागात्मक दृष्टि से करते हैं। कथा कहना, विवरण-विस्तार में जाना प्रबंधकाव्य के आग्रह हैं, पर यह उनका मूल उद्देश्य नहीं है। इसके माध्यम से वे 112 / भक्तिकाव्य का समाजदर्शन
SR No.090551
Book TitleBhakti kavya ka Samaj Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremshankar
PublisherPremshankar
Publication Year
Total Pages229
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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