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________________ १२] योगसार टीका। अन्तरात्मा व परमात्मा तीनों ही शक्तियां हैं। उनमेंसे किसी एककी प्रगदता रहेगी तब दोकी अप्रगटता रहेगी। असे पानी में गर्म होनेकी.. लाल हरे पीले व निर्मल होनकी व ठंढा रहनेकी आदि शक्तियां हैं। जब परका निमित न होगा तब वह पानी निर्मल ठंढा ही प्रगट होगा। उसी पानीको अग्निका निमित्त मिले तब गर्म होजायगा तब गर्मपनेकी दशा प्रगट होगी, शीतपनेकी अप्रगट रहेगी । मलका निमित्त मिलने पर मैला, लालरंगका निमित्त मिलनेपर लाल, हरे रंगका निमित्त मिलनेपर हरा होजायगा तथ निर्मलपना शक्तिरूपसे रहेगा। किसी पानीको फरका निमित्त न मिले तो बह सदा ही निर्मल. व ठंढ़ा ही झलकेगा | परंतु म र जलीन + रंगीन होली सति योंका उस पानी मेंसे अभाव नहीं होजायगा | सिद्ध परमात्माओंमें कदियका निमित्त न होनार ये कभी भी अन्तरात्मा व बहिरास्मा न होग, परंतु इनकी शक्तियोंका उनमें अमात्र नहीं होगा। अभव्य जीब कभी भी अन्तरात्मा व परमात्मा न होग-बहिरात्मा ही बने रहेंगे नोभी उनमें अन्तरात्मा व परमात्माकी शक्तियों का अभाव नहीं होगा । इसलिये श्रीपूज्यपादस्वामीने समाधिशतकमें कहा है-- बहिरन्तः परश्चति निधारमा सर्वदाहिए। उपेयातत्र पमं मध्योपायाहूहिस्त्यजेत् ।। ४ ।। भावार्थ--सर्व ही प्राणियों में बहिरामा, अन्तरात्मा ब पर. मारमा तीन प्रकारपना है, उनमेंगे बहिरात्मा' ना छोड़े। अन्तरात्माक उपायम परमात्मापनकी सिद्धि करे, यही योगेन्द्राचार्य परमात्मप्रकाशमें कहते हैं अप्पा तिविहु मुणवि बहु मूर मेलहि भाउ । मुणि सणाणे णाणमउ जो परमध्य सहाट ॥ १२ ॥
SR No.090549
Book TitleYogasara Tika
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, & Spiritual
File Size6 MB
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