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________________ योगसार टीका । [३१ गुणोंके बढ़नसे दूसरे परमाणुफे साथ बन्धयोग्य हो जाता है तब उसमें विभाय पर्याय होती हैं। पर्यायें दो प्रकारकी हैं-अयं पांय व व्यंजन पर्याय । प्रदेशगुण या आकारके पलटनेको व्यंजन पर्याय व अन्य सर्व गुणों के परिणमनको अर्थ पर्याय कहते हैं | शुद्ध द्रव्योंमें व्यंजन व अर्थ पर्याय' समानरूपसे शुद्ध ही होती हैं। अशुद्धसे अशुद्ध अर्ध पर्याय व आकारकी पलटन रूप अशुद्ध या विभाव व्यंजन पर्याय होती है। संसारी आत्मा अशद्ध हैं तो भी हरगर आप अपने गले ही गुणोंके शुद्ध या अशुद्ध परिणमनकी शक्तिये हैं । जबतक वे अशुद्ध हैं तबतक अशुद्ध पयांये प्रगट होती हैं | शुद्ध होनेपर शुद्ध पर्याय ही प्रगट होती हैं। शुद्ध आत्माओंमें भी शुद्ध व अशुद्ध पयायोंके होनेकी शक्ति है परंतु शुद्ध पर्याय ही प्रगट होती है क्योंकि अशुद्ध पायीं होनेके लिये पुद्गलका कोई निमित्त नहीं है। एक परमाणुमें सर्व संभवित पयायोंके होनेकी शक्ति है वैसे एक आत्मामें निगोदसे लेकर सिद्ध पर्याय तक मर्च पर्यायोंमें होनेकी शक्ति है, यह वस्तुस्वभाव है। सिद्ध भगवानों में बहिरात्मा, अन्तरात्मा व परमात्मा तीनोंकी पर्यायों के होनेकी शक्ति है | उनमेंसे परमात्मापने की शक्ति व्यक्त या प्रगट है । शेष दो शक्तियां अप्रगद हैं। इसी तरह संसारी आत्माओंमें जो बहिरात्मा हैं उनमें बहिरात्माकी पर्यायें तो प्रगट हैं, परन्तु उसी समय अन्तरात्मा व परमात्माकी पर्याय शक्तिरूपसे अप्रगट हैं । यद्यपि तीनोंकी शक्तियों एक ही साथ हैं। अन्तरात्मामें अन्तरात्माकी पर्यायें जो प्रगट हैं उसी समय बहिरात्मा व परमात्माकी पर्याय शक्तिरूपसे अप्रगद हैं। वास्तवमें द्रव्यको शक्तिकी अपेक्षा देखा जावे तो हरएक आत्मामें अहिरास्मा,
SR No.090549
Book TitleYogasara Tika
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, & Spiritual
File Size6 MB
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