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यांगसार टीका |
धन कमाता है, महान हिंसा, झूठ, चोरी, कुशीलादि पाप करता है उन कर्मको करते हुए यदि नरकाका बंध पड़ता है तो इस जीवको अकेला ही नरक में जाकर दुःख सहना पड़ता है, कोई कुटुम्बीजन साथ नहीं सका है। इसी तरह यदि कोई शुभ काम करता है व पुण्यधिकर स्वरी जाता है तो अकेला ही वहाँका सुख भोगना पड़ता है । वह अपने साथ किसी मित्र या स्त्री या पुत्रको ले जा नहीं सकता है । हरएक जीवकी सत्ता निराली है ।
कमका बंध निराला है, भावांका पलटना निराला है, साता सोनालि है। बार नहीं
पाए जाते हैं | एक धनवान होकर सांसारिक सुख भोगता है, एक निर्धन होकर कसे जीवन निर्वाह करता है, एक विद्वान होकर देशमान्य होजाता है, एक मुखे रहकर निरादर पाता है । जब रोग आता है तब इस जीवको उसकी वेदना स्वयं ही सहनी पड़ती है, पास में बैठनेवाले कोई भी उस वेदनाको नहीं भोग सकते हैं ।
संसारके कार्यों में भी इस जीवको अकेला ही वर्तना पड़ता हैं । सब हो संसारी जीव अपने २ स्वार्थ के साथी हैं | स्वार्थ न सधनेपर स्त्री, पुत्र, मित्र, चाकर सब प्रीति त्याग देते हैं । इसलिये ज्ञानी जीवको समझना चाहिये कि मैं हो अपनी मन, वचन, कायकी क्रियाका फल आप अकेला ही भोगेगा । अतपत्र दूसरोंके असत्य मोहमें पड़कर बापकार्यको न करना चाहिये । विवेकपूर्वक आत्महित जिसमें सधै उस तरह वर्तना चाहिये । नौकामें पथिकोंके समान सर्व संयोगको छुइनेवाला अधिर मानना चाहिये । उनमें राग, द्वेष, मोह न करके समभाव में वर्तना चाहिये । भीतरसे निर्मोही रहकर उनका उपकार करना चाहिये, परंतु अपनेको जलमें कमल के समान अलिप्त रखना चाहिये ।