SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૨૦૮ योगसार टीका । होना है । फिर यह समझे कि निश्चयसे या द्रव्य हृष्टिसे यह मेरा आत्मा शुद्ध हैं, जल और दूध के समान कर्मोंस एकमेक हो रहा है, तथापि जल दूध दोनों जैसे भिन्न २ है वैसे आत्मा भी सर्वे कसौंस, शरीरोंसे व रागादि विभावसे भिन्न है | भेदविज्ञानी कलाको प्राप्त करके निश्चय सम्यग्दर्शन के लाभ के लिये नित्य भेदविज्ञानका मनन करे एकांतमें बैठकर जगतको ब अपनेको द्रव्यदृष्टि देखकर छहों द्रव्योंको अलग २ शुद्ध देखे, वीतरागता बढ़ानेका उद्यम करे, समभाव लाने का उपाय करे, निरन्तर अध्यात्मका ही मनन करें | बहुत अभ्यासमे यह जीव करणलव्धिको पाकर अनन्तानुबन्धी चार कषाय व मिध्यात्वादि तीन दर्शन मोहनीयको उपशम करके सम्यग्दृष्ट हो सकेगा । तब भीतरसे आत्माका साक्षात्कार हो जायगा | आत्मानन्दका अनुभव होगा, तब ही मोक्षमार्गका पता चलेगा । सर्व शास्त्रोंके पढ़नेका हेतु सम्यग्दर्शनका लाभ है । यदि इसे नहीं पाया तो, शास्त्रांका पढ़ना कार्यकारी नहीं हुआ । अनेक जीव व्यवहार शास्त्रमें कुशल होकर विद्याका मद करके उन्मत्त हो जाते हैं, कबायकी मलीनताको अदा लेते हैं। वे ख्याति, पूजा या लाभके प्रेमी होकर सांसारिक विषयकपाय की पुष्टिके लिये ही ज्ञानका उपयोग करते हैं, वे कभी आध्यात्मिक ग्रन्थोंको नहीं पढ़ते हैं, न कभी में आत्मा के शुद्ध स्वरूपका मनन करते हैं । उनके भीतर संसारका मोह कम होनेकी अपेक्षा अधिक होता जाता है। वे आत्मज्ञान के प्रकाशको न पाकर अज्ञानके अन्धकारमें ही जीवन faताकर मानव जन्मका फल नहीं पाते हैं। शास्त्रोंका ज्ञान उनके लिये संसारबर्द्धक होजाता है, निर्वाणके मार्गस उनको दूर लेजाता है। इसलिये श्री योगेन्द्राचार्य उपदेश करते हैं कि शास्त्रोंके पठन :
SR No.090549
Book TitleYogasara Tika
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, & Spiritual
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy