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________________ १६४] योगसार टीका। मोक्षका उपाय हो सकेगा । जो यह पका जानेगा कि मैं रोगी हूं रोगका कारण यह है, वही रोगके कारणों से बचेगा व विद्यमान रोगके निवारा के लिये औषधक सेवन करेगा । इसलिये मलमूत्रमें कहा है कि जीव व अजीवके भेदका झान मोक्षका कारण है। तत्वानुशासनमें कहा हैतापत्रयोपतप्तेभ्यो भव्येभ्यः शिवशर्मणे । तत्त्वं हेयमुपादेयमिति द्वेषाभ्यधादसौं ॥ ३॥ पंधो निबंधनं चास्य हेयमित्युपदर्शितं । हेय स्याहःखसुखधोर्यस्माद्वीजमिदं द्वयं ॥ ४ ॥ मोक्षस्तत्कारणं तदुपादेयमुदाहृतं ! उपादेयं सुखं यस्मादस्मादाविर्भविष्यति ॥ ५ ॥ भावार्थ-जन्म, जरा, मरण तीन प्रकारके संतापसे दुःखी होकर भव्य जीवोंको परमानन्दमय मोक्ष सुखका लाभ हो इसलिये सर्वज्ञ देवने हेय या उपादेय दो प्रकार तत्व कहा है । बन्ध व उसके कारण मिथ्यात्वादि आमव भाव त्यागनेयोग्य हैं, क्योंकि ये ही त्यागनेयोग्य सांसारिक दुःख सुखके बीज हैं । मोक्ष व उसके कारण संवर व निर्जराभार ग्रहणयोग्य हैं, क्योंकि इनके द्वारा सच्चा सुख जो ग्रहणयोग्य है सो प्रगट होगा । समयसार कलसमें कहा है जीपादजीवमिति लक्षणतो विभिन्नं, - ज्ञानी जनोऽनुभवति स्वयमल्लसन्तं । अज्ञानिन्छ निरवधिप्रविम्भितोऽयं, मोहस्तु तत्कथमहो वत नानटीति ॥११-२|| - मावार्थ-जीवसे अजीव लक्षणसे ही भिन्न है इसलिये शानी
SR No.090549
Book TitleYogasara Tika
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, & Spiritual
File Size6 MB
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