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________________ योगसार टीका। [ १२२ विकृत (खुला) व मि तीन । हरएक योनिम तीनोंमेंसे एक एक गुण रहेगा । जैसे सचिस, शीत व संवृत हो या अचित्त शीत संवृतं हो इत्यादि । इसीके ८४ लाख मंद गुणोंकी तरतमताकी अपेक्षासे हैं। वे इसप्रकार हैं(१) नित्य निगोद साधारण वनस्पति जीवोंकी ७ लाख योनियां (२) चतुर्गति या इतरनिगोद साधा वन०, ७ , , (३) पृथ्वीकायिक जीवोंकी (४) जलकायिक जीवोंकी (५) अग्निकायिक जीवोंकी (६) वायुकायिक जीवोंकी (७) प्रत्येक वनस्पति जीवोंकी (८) द्वेन्द्रिय जीवोंकी (९) तेन्द्रिय जीवोंकी (१०) चौन्द्रिय जीवोंकी (११) देवोंकी (१२) नारकिवाकी (१३) पंचेन्द्रिय निर्यचौकी (१४) मनुष्योंकी कुल र लाख योनियां श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचारमें सायतकी महिमा बताई है - न सम्याल्वमन किश्चित् त्रैकाल्ये त्रिजगत्यति । श्रेयोऽश्रेयश्च मिथ्यात्वसमं नान्यत्तनुभृताम् ॥ ३४ ॥ सम्यग्दर्शनशुद्धानारकतिर्यवनपुंसकत्रीत्वानि । . दुष्कुल बिकृताल्पायुदेरिद्रतां च ब्रजन्ति नाप्यतिकाः ।। ३५॥
SR No.090549
Book TitleYogasara Tika
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, & Spiritual
File Size6 MB
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