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गुरु
के निकट चिरकाल तक विद्या पढ़ कर तथा वाह्याभ्यन्तर के भेट से दो प्रकार का तप तपकर उस राजा ने आयु के अन्त में समाधि की विधि से शरीर का परित्याग किया और फलस्वरूप तीसरे स्वर्ग में देव हुआ । ६६ ।।
क्षुल्लक - क्षुल्लिका भी अपनी आयु अल्प जान यथोक्त तपश्चरण करने लगे और योग द्वारा शरीर रूपी बन्ध को छोड़ कर ईशान स्वर्ग में देव हुए । ७० ।1
देवाङ्गनाएँ जिसे कामजनित मन्दमन्द मुसक्यान के साथ देख रही थीं तथा जो मध्याहून के सूर्य की कान्ति को चुराने वाला था ऐसे शरीर को धारण करने वाले, स्वर्गस्थित, परमसुखी वे देव, विषम संसार को निःसार करने वाले मुनिराज का स्मरण करते हुए वहाँ वहाँ क्रीड़ा करते थे । ।७१ 11
राजा यशोथर, सुदत्त महाराज से क्षुल्लक क्षुल्लिका तथा राजा मारिदत्त का तपोबल से वगांथिरोहण जान कर एवं उनके वियोग से उत्पन्न शोक को छोड़ कर परम प्रीति को प्राप्त हुए ।। ७२ ।।
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