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उन शुल्लक अल्लिका की आज्ञा से जिसे शुद्ध दृष्टि प्राप्त हुई थी, जो हिंसा के दुःख से भयभीत हो रही थी तथा जनसमूह जिसे शरीरधारिणी के रूप में देख रहे थे ऐसी उस चण्डमारी देवता ने वैराग्य प्राप्त कर क्षुल्लक-क्षुल्लिका के युगल को नमस्कार किया ।।६५।।
"मेरे चरणों के भक्त आज से पवित्र पुष्प आदि के द्वारा मेरी पूजा करें। जो जीवघात करेगा उसका कुटुम्ब नष्ट हो जायगा", यह कहकर वह देवी अदृश्य हो गई ।।६६ ॥
उसी देवी के द्वारा उन क्षुल्लक-झुल्लिका की पूजा देख कर जो नगरवासियों के साथ आश्चर्य कर रहा था एसा वह मारिदत्त राजा उन दोनों को अपना भानेज तथा भानेजन जान कर हर्षित हुआ ।।६७।।
जो विषयसुख से विरक्त हो चुका था तथा जिसकी विनयलक्ष्मी उपमा रहित थी ऐसा राजा मारिदत्त कुसुमदत्त नामक श्रेष्ठ पुत्र को अपना राज्य देकर उन क्षुल्लक-क्षुल्लिका के साथ वन में स्थित सुदत्त मुनिराज के पास गया और उसने वहां संयम धारण कर लिया।।६८॥
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