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यशोधर की माता भी उसी दोष के कारण क्रम से बहुत भारी दुःख उठाती हुई कुना, साँप, नाकू, बकरी, भैंसा और मुर्गा हुई है ।।५४ ।।
तदनन्तर हे राजन्! बनान्त में धनुष धारण करने वाले आपके द्वारा दे दोनों मुर्गे शब्दयेथी बाण के द्वारा मारे जा कर विचारों की विशुद्धि से ये कुसुमावली के पुत्र हुए हैं ।।५५ ।।
इस प्रकार कृत्रिम मुर्गे में जीव का संकल्प कर की हुई हिंसा के द्वारा भी पिताजी ने भयंकर भवभ्रमण किया है, यह सुनकर राजा यशोमति बहुजीव-धात मे भीत हो गया नष्टा हाने अपना पन तैरागः गम से परिपूर्ण किया ।।५६ ।।
अब मुनिराज उनके पूर्वभवों का क्रम कह रहे थे तब राजा यशोमति के पुत्र भी उसी क्षण अलग-अलग अपने पूर्वभवों का स्मरण स्वयं करने लगे। ठीक ही है क्योंकि निश्चय से स्मृति प्रायः प्रबोधक कारणों से उत्पन्न होती है।।७।।
तदनन्तर वैराग्य में तत्पर राजा ने बहुत राजाओं के साथ पुत्र के लिये राज्य देकर तप्प ग्रहण कर लिया। इसी प्रकार उसके कल्याणकारी मित्र महाबुद्धिमान वणिक ने भी दीक्षा ले ली।।'५८ ।।
राजा के पुत्र ने पिता के तप में विघ्न न हो'. इस भय से उस समय तो राजवैभव को ग्रहण कर लिया था परन्तु वह विरक्त चित्त था इसलिये उसने वह राजवैभव यशोवर नामक लोटे भाई के लिये दे दिया।।१६।।
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