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ये क्रोधसहित होकर भी अनुग्रह करते हैं और क्रोधरहित होकर भी निग्रह के लिये समर्थ होते हैं। जिनकी आत्मा निरन्तर ज्ञान में लवलीन रहती है ऐसे महापुरुषों की यह चेष्टा असाधारण है ।।२।।
इसलिये भक्ति द्वारा इन मुनिराज के चरणों में नमस्कार कर कृतदोषों को दूर करने वाले इनके वचनों को स्वीकृत करो। यदि तुम्हें हमारे ये वचन नहीं रुचते हैं तो तुम नीचे नरक लोक में जाना चाहते हो।।४३ ।।
राजा ने इस वणिक् को उत्तर दिया कि जिनका शरीर स्नान से रहित है, जो मलिन हैं तथा शिकार में विघ्न करने वाले हैं, ऐसे इन मुनि को 'कुल की अपेक्षा यह कौन हैं इसका निर्णय हुए बिना मैं कैसे नमस्कार कर सकता हूँ।।४४ 11
वणिक् ने कहा - ये मुनिराज ही सदा शुद्ध हैं, सदाचार से इन्होंने पापों का निरोध कर दिया है। अपवित्र चित्त वाले मनुष्यों की जल से शुद्धि तो ऐसी है जैसी विष्ठा की मुट्ठी को बाहर से जल से साफ करना है।।४५॥
ये कुल से गङ्ग हैं, कामविजयी हैं, कलिङ्ग देश में इनका पराक्रम चिरकाल से प्रसिद्ध है, सुदत्त इनका नाम है, किसी कारण भोगों से इनकी लालसा हट गयी इसलिये आज यहाँ तप कर रहे हैं ।।४६ ॥
हे राजन्! इन्हें तुमने जो शिकार की बाधा का कारण कहा है वह ठीक ही है। इन धर्मस्वभावी मुनिराज के प्रभाव से इस वन में शिकार नहीं होती है।।४७।।