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जो राजा यशोधर और उनकी माता थी वे दोनों कृत्रिम मुर्गे को मारकर अनेक भवों में भ्रमण करते हुए अत्यन्त दुखी हुए हैं। अब वे मुर्गे होकर इस समय तुम्हारे पास में रह रहे हैं ।।३०।।
जब संकल्प मात्र से किया हुआ वध अत्यन्त दुःसह दुःख को करता है तब असत्य भाषण आदि सभी पापों से जो साक्षात् युक्त है उसका क्या कहना है? ।।३।।
इसलिये हे वत्स! इस हिंसा आदि पापसमूह का जीवनपर्यन्त के लिये त्याग करो 1 अधिक विचार करना व्यर्थ है क्योंकि आत्मज्ञानी सत्पुरुष जो कहते हैं उसका फल हित को ग्रहण करना और असत को छोड़ना है।।३२ ।।
उन उत्तम मुनिराज के ये वचन सुन कर उस चण्डकर्मा ने अणुव्रतों के साथ सम्यग्दर्शन को उपमा वित्रा और जिन्हें पूर्व मटन माण हो रहा है ऐसे वे दोनों मुगें भी हर्ष से शब्द करने लगे।।३३ ।।
उसी समय राजा यशोमति ने जो अपनी स्त्री के लिये धनुष विषयक अपना कौशल दिखाने का उद्यम कर रहा था, शब्दवेधी झाण के द्वारा पिंजड़े में स्थित उन दोनों मुर्गों को पृथक्-पृथक् बाण चलाकर मार डाला ।।३४ ।।
व्रतरूपी रत्न से सहित मन को स्थिर कर जिन्होंने शरीर को छोड़ा था ऐसे उन दोनों पक्षियों को राजा यशोमति की रानी कुसुमावली ने उस प्रकार गर्भ में धारण किया जिस प्रकार खान कान्तियुक्त दो मणियों को धारण करती है।।३५||