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क्रोध से राजा ने उस बनजारे का सारभूत सब धन लुटवा लिया और विचित्र विथि से घात करने की इच्छा से बलपूर्वक उस भैंसे को छीन लिया।।७१।।
राजा के निदंय सेवकों ने उस भैंसे के चारों पैर कीलित कर दिये, उसके पेट को खारे पानी से सुखा दिया तथा खड़े-खड़े ही उसे पकाना शुरू कर दिया । १७२।। ___काट कर सामने परोसे हुए उसके परिपक्व भाग को खा कर यशोमति की पाता बोली कि मेरे बिन में इससे तृप्ति नहीं है।।७३ ।।
किन्तु मुझे पाकशाला में बंधे हुए बकरे की जांध काट कर दो। राजमाता के कहे अनुसार मनुष्यों ने ऐसा ही किया। यह देख दासिया कहने लगी कि देखो इस समय अमृतमती का शरीर दुर्गन्धित और बहुतभारी घावों के छिद्रों से दुःखी हो रहा है, फिर यह किस कारण निरन्तर अधिक मात्रा में अहितकारी मांस खाती रहती है।।७४ ७५ ।।
इसने बहुत दुष्ट कर्म किया है, उसी के विपाक से यह अल्प फल मिल रहा है। ठीक ही है क्योंकि तीव्र परिणामों से बाँधा हुआ कर्म इसी भव में साक्षात् भोग लिया जाता है।।७६ ।।
यह कामदेव के समान अपने स्वामी को छोड़ कर रात्रि में उस जार के पास गयी है जिसके आटों अग कुटिल हैं। इसने विष के द्वारा माता सहित राजा को मृत्युलोक पहुंचाया है।७७ ।।
समीप में स्थित शासियों का समूह जब इस प्रकार के वचन कह रहा था तब खण्डित बकरा अपनी स्त्री को देख क्रोध से नासा को घुरघुराता हुआ यह विचार कर रहा था ||७८ || ___ अरी कुलटे! तेरा यह शरीर लो वैसा सुन्दर था फिर इस प्रकार सब ओर से गलित क्यों हो रहा है? सचमुच ही तुम्हारा वह पति कुष्टी था, उसके समागम से ही यह अवरथा हुई है।।७६ ।।।
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