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ब्राह्मणों के वचनों का विचार कर राजा ने चाण्डाल के घर से बकरे के उस बच्चे को बुलवाया। उसने आकर जब उस भैंसे के मांस को शुद्ध कर दिया तब रसोइये ने उस स्वादिष्ट मांस को पकाया । । ६२ ।।
अन्न के साथ भैंसे के उस मांस को इच्छानुसार खा कर ब्राह्मणों ने इस प्रकार का वचन कहा कि स्वर्ग में स्थित राजा यशोधर अपनी माता के साथ चिरकाल तक तृप्ति को प्राप्त होंगे । । ६३ ।।
ब्राह्मणों के वचन समझ कर उस बकरे को पूर्वभव का स्मरण हो गया जिससे वह मन में विचार करने लगा कि यह में वही यशोधर राजा हूँ और यह यशोमति राजा मेरा पुत्र है । । ६४ ।।
यह सब मेरा परिजन है, यह मेरे रहने का नगर उज्जयिनी है, और यह मेरा रत्नमहल है जहाँ रानी ने विष के द्वारा मुझे मारा था । । ६५ ।।
परन्तु वह स्त्री कहाँ है? मन में यत्न करने पर भी वह दिख नहीं रही हैं। क्या जार के घर जाकर रमण करती है या मृत्युवास को प्राप्त हो गयी है? मैं नहीं जान रहा हूँ । ६६ ।।
बकरे के जन्म में निवास करता हुआ मैं आज यहाँ घोर दुःख भोग रहा हूँ परन्तु यह राजा पितृभक्ति से ब्राह्मणों के द्वारा स्वर्ग में बतलाता है ॥ ६७ ॥
इस प्रकार वह उत्तम बकरा जब भूतकाल के हजारों संस्मरणों के साथ दुःख भोग रहा था तब उसकी वह माता भी कलिङ्ग देश में एक भयंकर भैंसा हुई । ६८ ।।
जिसकी पीठ पर बहुत भारी भार लदा हुआ है तथा जिसका शरीर अत्यन्त श्रेष्ट है ऐसे उस भैंसे को चलाता हुआ एक सार्थवाह प्रमुख बनजारा उज्जयिनी के उपवन में आया, वहाँ उसने मार्ग के खेद से युक्त अपने संघ को ठहरा दिया था । । ६६ ।।
वह भैंसा थकावट की अधिकता से गहरे पानी वाली शिप्रा नदी में घुस कर विचरण कर रहा था। उसी समय उसने पानी में छोड़े हुए राजा की सवारी के राजहंस नामक घोड़े को मार डाला । ७० ।।
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