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काले साप को खा कर तृप्त हुआ यह सेही जाना ही चाहता था कि एक भूखे भेड़िचे ने उसे घेर कर मार डाला।।४५ ।।
पश्चात् वह सेही शिप्रा नदी में लोहिताक्ष नामका एक विशेष मच्छ हुआ और क्रूरकर्म का रस भोगने वाला वह काला साप उसी शिप्रा नदी में शिशुमार नामका जलजन्तु हुआ। ४६ ।।
__ वह शिशुमार अपने शत्रुभूत लोहिताक्ष मच्छ को मारने के लिये उसके पीछे-पीछे बड़े वेग से दौड़ रहा था कि बीच में जल में घुसी हुई राजा की कुब्जी नामक दासी को पाकर उसे वह अपने बिल में ले गया।।४७ ।।
तदनन्तर उज्जयिनी के राजा यशोमति ने ईष्या से उस बलिष्ठ शिशुमार को थीवरों द्वारा पानी के बिल से बाहर निकलवा कर छेदन-भेदन तथा जलाना आदि उपायों से मार डाला ।।।८।।
मृत्यु के द्वारा असा हुआ वह शिशुमार उसी नगर के मध्य चाण्डालों की वसति में बकरी हुआ। ठीक ही है क्योंकि कर्मरूपी रस से मत्त हुआ जीय किस-किस अशुचि स्थान को प्राप्त नहीं होता।।४६।।
सेवक लोग उस लोहिताक्ष मत्स्य को भी जाल द्वारा पकड़ कर यशोमति राजा के पास ले गये तो उसने कहा कि इसे काट कर 'शानदार श्राद्धकार्य करो ।।५० ।।
उसका मांस खाकर ब्राह्मणों ने स्वर्ग में विद्यमान राजा यशोधर को आशीर्वाद कहा। काटा गया वह मच्छ मन में कहने लगा कि मैं तो यहाँ मच्छ हूँ, स्वर्ग कहाँ है? ।।१।।
शिशुमार का जीव जो चाण्डालों की वसति में बकरी हुआ था उसी ने उस मृत लोहिताक्ष मत्स्य को बकरे के रूप में अपने गर्भ में धारण किया जो तीसरे जन्म में नील मेघ के समान भयंकर साप हुआ था ।।५२ ।। ___ गर्भवास को छोड़कर में उत्पन्न होकर जब वह बकरा प्रौढ़ यौवन से युक्त शरीर वाला हुआ तब वह कायर, काम के बाणों से पीड़ित शरीर होता हुआ अपनी माता के ही साथ रमण करने लगा।।५३ ।।
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