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* तृतीय सर्ग जिसकी भुजाओं का पराक्रम अद्वितीय है ऐसे हे मेरे लाल! शत्रु तुझ पर अपना प्रभाव नहीं दिखा सकते। समुद्रान्त पृथिवी पर यह तेरा राज्य भी शत्रुरहित है।।१।।
तुम्हारा यह खजाना रूपी सागर यद्यपि स्तुतिरूप गर्जना से युक्त याचक रूपी मेघों के द्वारा प्रतिसमय ग्रहण किया जाता है तो भी यह अविनाशी है तथा उतना ही है।।२।।
काम के रसिक तथा रमण करने के इच्छुक तुम्हारे पास ऐसी तरुण स्त्रियाँ हैं जिनके स्थून स्तनों पर हार थारण किया गया है, जिनके मुख मन्दमन्द मुस्कान से सुन्दर हैं और जिनके नेत्र स्निग्ध, दीर्घ और सरल हैं।।३।। - मनोहर वादिनों के कोमल किन्तु जोरदार शब्दों, गायिकाजनों के मनोहारी गीतों, नृत्यकारिणी स्त्रियों की सरस नृत्य क्रीड़ा की लीला तथा अन्य विनोदों के साथ तुम रहते हो।।४।।
तुम गोष्ठी में प्रौढ़ साधुओं के युक्तियुक्त वचनों, षड्दर्शन के प्रकाण्ड विद्वानों. सुदृढ़ शास्त्रार्थों तथा वस्तु तत्त्व का वर्णन करने वाले चतुर कवियों के द्वारा विनोद सुख को प्राप्त होते हो।।५।।
जो ग्रन्थानुसार निदान करने में निपुण हैं, जिनकी क्रियाप्रणाली प्रसिद्ध है, तथा जो दुष्ट वैद्यरुपी सिंहों को नष्ट करने के लिये सिंह समान हैं ऐसे वैद्य बड़ी भक्ति से तुम्हारे शरीर की चिन्ता करते हैं - सदा देखभाल रखते हैं।६।।
तुम गोष्ठी में गर्व सहित विवेचन करने में समर्थ तथा वस्तुस्वरूप का वर्णन करने वाली कविता में चतुर कवियों के द्वारा उनके श्रेष्ठ सूक्तियों से परिपूर्ण सरल अमृतरूप वचनों से विनोद सुख को प्राप्त होते हो।७।।
जिनके शास्त्रार्थ समस्त लोक में प्रसिद्ध हैं, जो तर्कशास्त्र की कला के द्वारा कार्तिकेय की तुलना करते हैं, और जो प्रौढ़ तथा सारभूत वचनामृत से श्रेष्ठ हैं ऐसे वादियों के द्वारा तुम निरन्तर सुख को प्राप्त होते हो।।८ ||