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प्रास्ताविक लेख में
यशोधरचरित की कथावस्तु
अवन्तिदेश-स्थित उज्जयिनी का राजा यशोधर अपनी रानी अमृतमती के साथ रतिक्रीड़ा कर रात्रि में लेट रहा था। रानी उसे सोया जान धीरे से पलंग से उतरी और दासी के वस्त्र पहिन कर भवन से बाहर निकली। यशोधर इस रहस्य को जानने के लिए चुपके से उसके पीछे हो गया। गनी गनशाला में रहने वाले महावत के संगीत से आकृष्ट होकर उससे प्रेम करने लगी थी। राजा यशोधर ने रानी को महावत के साथ रतिक्रीड़ा करते देख दोनों की हत्या करने के लिए तलवार उटाची परन्तु स्त्रीबश्य को लोकापवाद का कारण समझ चुपचाप वापिस आकर पलंग पर लेट गया। कुछ समय बाद रानी भी चुपके से आकर उसी पलंग पर लेट गयी। रानी के दुरागर से राजा यशोधर को बड़ा दुःख हुआ। उसकी मुखाकृति परिवर्तित हो गयी।
प्रातःकाल होने पर जब वह राजसभा में गया तब उसकी माता चन्द्रमती ने उससे उदासीनता का कारण पूछः । लम्जावश उसने ग़नी के दुराचार की बात न कह कर अन्य दुःस्वप्न देखने की बात कह दी। माता चन्द्रमती ने बड़े प्यार से कहा कि वरत! चिन्ता न करो, कुलदेवी चण्डमारी के मन्दिर में बलि चढ़ाने से दुःस्वप्न का फन्न दृर हे नायगा। यशोधा जीवहिंसा की बात सुन कर सहम गया। चन्द्रमती ने कहा .. यदि जीवहिंसा से मय लगता है तो आटे का मुर्गा बना कर उसका बानि टे दी जायगी। माता के दुराग्रह के सामने यशोधर विदश हो गया और आटे का मुर्गा बनाकर चण्डमारी कुलदेवी को उसकी बन्दि चढ़ा दी। ___इयर रानी अमृतपती के दुराचार से राजा यशोधर खिन्न था अतः उसने माता चन्द्रमती के साथ संन्यास लेने का विचार किया । ग़नी अमृतमती को ऐसा लगा कि इन दोनों को हमारे दुराचार का पता लग गया है इसीलिए संन्यास का
→ पाँच
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