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तिक्रिया के अन्त में जिसका शरीर कुछ म्लान पड़ गया था ऐसी रानी अमृतमती नेत्रकमल बंद कर ही रही थी कि उसने सुखदायक उस गीत को सुना। सुना ही नहीं उसने उस सुरीले कण्ठ वाले महाक्त में इच्छा भी की ।।३६।।
तदनन्तर उस कामी में जिम्मका हिन्द लग रहा था ऐगी राही ने प्रात: काल उसके पास दूती भेजी । गुणवती नाम की दूती उस महाक्त को देख कर ही लौट आयी और रानी की निन्दा करने लगी।।३७।।
__ अहो! वस्तु के यथार्थ ज्ञान को रोकने वाले काम की विचित्र विडम्बना है। क्योंकि मनुष्याकार को धारण करने वाली उर्वशी रूप देवी ऐसे निकृष्ट - नीच महावत को चाह रही है।॥३८॥
इस महावत के मुख आदिक दुःसह दुर्गन्ध से युक्त है, शरीर स्वभाव से ही झुकी हुई पीट से युक्त है, आखें और भौंह हैं या नहीं, यह संशय का विषय है, गर्दन है ही नहीं और सिर के केश सुञ्चित तथा शीर्ण हैं ।।३।।
मुह कौए के मुख के समान काला है, दात कुछ बाहर हैं कुछ भीतर हैं, हाथ निरन्तर हाथी के मूत्र से लिप्त रहते हैं और पेट जलने के घाव के मवाद से युक्त है।।४।।
यह सुन्दर आकृति को धारण करने वाली रानी के लिये कैसे रुच सकता है? अथवा मुझे ऐसी चिन्ता से क्या प्रयोजन है? क्योंकि अयोग्य मनुष्य में प्रीति करना स्त्रियों का रखमाव है।।४।।
इती ने यह अपना मनोगत भाव उस कृशाङ्गी रानी के पास जाकर कह दिया। इसके उत्तर में नत भौहों वाली रानी काम से आतुर तय गद्गद मुख से बोली । १४२॥ __ नवीन अवस्था, अत्यन्त सुन्दर रूप और ऊंचा कुल...... यह सब विचार करना कुबुद्धि है। हे सखि! भगवान् काम जिस पर प्रसन्न झे सुन्दरियों के लिए वहीं देव है।।४।।
अच्छे से अच्छा श्रेष्ट रूप हो, उसका साध्य तो स्त्री के मनरूपी रल को प्राप्त कर लेना ही है। यदि उस महावत के वह है तो फिर इस विचार से क्या प्रयोजन है? क्योंकि कार्य के सिद्ध होने पर कारण की इच्छा नहीं रहती।।४।।