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झरोत्रों के द्वार पर मन्द मन्द बहता हुआ, कपुर की धूली से सुगन्धित वायु उस गृहदेवता के श्वास के समान चिरकाल तक सुशोभित हो रहा था ।।२५।।
यह पलंग के रत्नों की कान्ति से कुछ-कुछ श्यामवर्ण, सफेद चद्दर से आच्छादित कई के गद्दे पर चन्दन के तिलकों से सुन्दर शरीर वाली उत्कृष्ट अमृतमती देवी को रमण कराता था ।।२६ ।। *
तदनन्तर जब रात्रि परिपाक को प्राप्त हुई तब रतोत्सव प्रारम्भ करने के परिश्रम से वशोथर कान्ता का आलिङ्गन कर निद्रासुख को प्राप्त हुआ। निद्रासुख के समय उसका कामभाव कुछ शिथिल हो गया था।।३३ ।।
इसी बांच में राजा की सवारी का हाथी राजमहल के समीप जहां बधता था वहाँ स्थित जागते हुए महावत ने एक सुन्दर गीत गाया ।।३४ ।।
व त पृथक् पृथक् मूछनाओं से परिपूर्ण था, सुबिस्तृत स्वर से प्रौढ़ श्रेष्ट था, उत्तम प्रयोग से मधुर तथा उज्वल था और मालव पञ्चम नामक स्वर से सहित था ।।३५ ||
में श्लोक संख्या २७ से ३२ तक का माव मूल से जानना चाहिए।