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इस प्रकार परस्पर समझाते हुए दोनों राजपुत्र किसी आशंका के बिना ही चण्डमारी के मन्दिर जा पहुंचे ।।१।।
जिस मन्दिर के आंगन का भाम रक्त से सम्मार्जित होने के कारण निरन्तर लाल-लाल रहती थी और ऐसी जान पड़ती थी मानों रक्तपान की इच्छा से देवी ने अपनी लम्बी जीभ ही फैला रक्खी हो।।४२ ।।
जहा मक्खियों के पटल से ढके हुए मांस के ढेर लगे हुए थे जो ऐसे जान पड़ते थे मानों चण्डमारी ने उन्हें अधिक मात्रा में खा लिये थे किन्तु हजम न होने से वमन कर दिये हों।।४।।
जिसके कोट के शिखर पर टंगे हुए मनुष्यों के नवीन शिरों से वह देवी ऐसी जान पड़ती थीं मानों बहुत मुखों के द्वारा जीवों को बहुत जल्दी खोज रही हो।।४४ ।।
राजा के निकटस्थ होने पर लोगों ने उन क्षुल्लक युगल को आशीर्वाद देने के लिये प्रेरित किया। फलस्वरूप उन बुद्धिमानों ने इस प्रकार का आशीर्वाद पढ़ा ।।४५।।
हे राजन! जो सब जीवों का हितकारी है तथा सब लोगों को सुख देने वाला है उस धर्म के द्वारा तुम पृथिवी को उत्तम राजा से युक्त करो।।४६ ।।
निर्भय और स्पष्ट बोलने वाले उन दोनों को देख कर जो अत्यन्त शान्त हो गया था तथा जिसके नेत्र आश्चर्य से चकित हो गये थे ऐसा मारिदत्त विचार करने लगा।।४७।। ___क्या यह मनुष्यों के आकार से प्रतारिस देवों का युगल है अपना काम
और उसकी प्रिया को जीतने वाला नागकुमारों का युगल है।।४|| . ___मैंने कभी ऐसा रूप नहीं देखा । अहो! चिरकाल बाद मेरी नेत्रदृष्टि सफल हो गयी ।।४६।। .
तलवार उभारे हुए मुझे तथा दया-रहित देवी को देख कर मैं इनमः चित्त भयभीत नहीं हुआ। अहा! इनका शौर्य सर्वोत्कृष्ट है ।।५० ।।
राजा ने उनसे स्पष्ट पूछा कि आप दोनों कौन हैं? कहाँ से आये हैं? आपका कुल क्या है? और किस कारण बाल्यावस्था में भोगों से निःस्पृह हुए
हैं? ||५१।।