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तदनन्तर देवी की पूजा के कान में विलम्ब करने के लिए असमर्थ राजा मारिंदन देवी के मन्दिर में आया ।।२१।।
नगरवासी लोग उस राजा की आज्ञा से समस्त दिशाओं से प्राणियों के 'युगल ले अग्ये ।।२२।।
ओ, बना, निशानमा जरा आदि जीव लम्बे बन्धन से पीड़ित हो मन्दिर में चिल्ला रहे थे ।।२३।।
उन सब जीवों के शब्दों के आघात से पृथिवी जहां-तहाँ विदीर्ण हो गयी थी, उनसे वह ऐसी जान पड़ती थी मानों अधोगति के द्वारों को ही प्रकट कर रही हो।।२४।।
तलवार उभारे हुए राजा ने चण्डकर्मा को आज्ञा दी कि शुभलक्षणों से परिपूर्ण मनुष्यों का युगल खोजा जाय ।।२५ ।।
जब मैं अपने हाथ से देवी के लिए उस मनुष्य युगल को मार चुकृ तब नगरवासी लोग समधरातल पर फैले हुए उन-उन जीवों को मारें ।।२६ ।।।
यदि ऐसा न किया गया तो विधि की न्यूनता देवी को क्रोध उत्पन्न कर देगी और वह क्रोश वान्नक, स्त्री, पशु तथा वृद्धों का विघात करने के लिए वृद्धि को प्राप्त होगा ।।२७।।
इस प्रकार स्वामी की आज्ञा से शीघ्रता करने वाले चण्डकमा ने इधरउधर सेवक भेजे और स्वयं भी मनुष्य-युगन को खोजने के लिए गया।।२८।।
इसी समय बुद्धिमान् तथा पाच सी मुनियों से सहित सुदत्त नामक मुनिराज उस नगर के उद्यान में आये ।।२६ ।।
वे मुनिराज तीन दोषों से रहित थे, तीन दण्डों से वर्जित थे, तीन शल्यों को नष्ट करने वाले थे, तीन प्रकार के गारवों-मदों से दूर थे।।३०।।