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________________ यशस्तिलकचम्पूकाव्ये प्राणाधाताग्निवृत्तिः परधनहरणे संयमः सत्यवाक्यं काले शक्या प्रवेयं युवतिजनकथामूकभाषः परेषाम् । सृष्णास्त्रोतोविन्धो गुरुषु च विनतिः सर्वभूतानुकम्पा सामान्यं सर्वशास्त्रेष्यनुपहविधिः श्रेयसामेष मार्गः ॥६४॥ इति कयमेतत्सर्वपथौनमुवाच वररुचिः। होमस्नानतपोजाप्यानह्मचर्मादयो गुणाः । पति हिसारते पार्थ चाण्डालसरसोसमाः ॥६५॥ इति कमि व्यासोक्तिः । भूषितोऽपि चरेवमं यत्र तत्राथमे रसः । तमः सर्वेषु भूतेषु न लिग धर्मकारणम् ॥६६॥ इति कमिदमाह वैवस्वतो मनुः । अवक्षेपेण हि सतामसतां प्रग्रहेण च । तया सत्त्वेष्वभिटोहावधर्मस्य - कारणात् ॥६७॥ विमाननाच्च मान्यानां विश्वस्तानां च धातनात् । प्रजानां जायते लोपो मपतेश्चायुषः क्षयः ॥१८॥ कमियमभाषत पाण्यप्रस्तावे भारद्वाजः। चातुर्मास्यग्घर्षमासिकम, दर्शपौर्णमासयोश्चातूरात्रिकम्, राजनक्षत्रे गुरुपर्वणि च प्रेरानिकम, एवमन्यासु घोपहतामु सिथिधु विराममेकरा था सर्वेषामघातं घोषयेबायुबलबद्ध पर्यमिति कयमुपनिषति वदति स्म विशालाक्षः । प्रवाह का बांधना-अर्थात्-परिग्रह का परिमाण करना, गुरुजनों के लिए नमस्कार करना एवं समस्त प्राणियों के प्रति दयालुता, यह सर्वसाधारण सर्वशास्त्रों में पुण्यों का मार्ग है, जिसे कोई उल्लङ्घन नहीं करता ॥६४|| वररुचि-कात्यायन नाम के विद्वान् ने यह सर्वसाधारण कल्याण का मार्ग किस प्रकार कहा? हे अर्जुन ! होम, स्नान, सांतपन आदि तप करना, मन्त्रों का जाप करना, ब्रह्मचर्य-आदि गुण, हिंसक पुरुष में वर्तमान हुए चाण्डाल के तालाब के अल-सरीखे अग्राह्य है ॥६५।। इस प्रकार का यह व्यास-बचन किस प्रकार से है ? समस्त प्राणियों में समता ( दयालुता परिणाम रखता हुआ गृहस्थ भी जिस किसी आश्रम ( ब्रह्मचर्य-आदि ) में रत हुआ धर्म का अनुष्ठान करे, जटी व मृण्डो-आदि चिह्न धर्म का कारण नहीं है ।।६६॥ इस प्रकार यह सूर्यपुत्र मनु ने किस प्रकार कहा? निश्चय से शिष्ट पुरुषों का तिरस्कार करने से, दुष्ट पुरुषों के स्वीकार ( आदर ) करने से, प्राणियों का घात करने से, पान के प्रयोजन से, माननीय ( पूज्य ) पुरुषों का भङ्ग करने से, एवं विश्वस्त पुरुषों का घात करने से प्रजाजनों का विनाश होता है और राजा को आयु क्षीण ( नष्ट होती है ।।६७-६८11 यह वचन पाड्गुण्य (सन्धि व विग्रह-आदि) के अवसर पर भारद्वाज नाम के ब्राह्मण विज्ञान ने किस प्रकार कहा? 'राजा का कर्तव्य है कि यह आयु व शक्ति की वृद्धि के लिए वर्षा काल में पन्द्रह दिन तक समस्त प्राणियों के घात न करने की घोपणा करे । तथा वर्षा ऋतु में अमावस्या व पूर्णमासो के समय चार दिन तफ, अर्थात् वर्षा ऋतु सम्बन्धी दो अमावास्या व दो पूर्णमासी इस प्रकार चार दिन तक, समस्त प्राणियों के वध न करने की घोषणा करे। इसी प्रकार राज नक्षत्र ( जिस नक्षत्र में राजा का जन्म हुआ है) में तथा संक्रान्ति आदि गुरुपर्व में तीन दिन तक समस्त प्राणियों को हिंसा न करने की घोषणा करे। इसी प्रकार दूसरी उपहत (ग्रहण-आदि से पित्त ) तिथियों में दो दिन तक अथवा एक ही दिन समस्त प्राणियों के पास न करने की घोषणा करे।' इस प्रकार वेदान्त शास्त्र में विशालाक्ष ( प्रभाकर ऋषि) ने किस प्रकार कहा? 'मधु व मांसआदि का आहार शिष्ट पुरुषों द्वारा निन्दित हैं। इस प्रकार शिकार करने की जीविका में आनन्द माननेवाले
SR No.090546
Book TitleYashstilak Champoo Uttara Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages565
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, P000, & P045
File Size17 MB
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