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________________ चतुर्थ आश्वासः ३५ एक सनयेवेहकवधूर्मूलवेयेस एवमन्याश्चोपाध्यायिकाप्रभृतयो भिजयतिसमक्षमुपपतिभिः सहारेभिरे महासाहसानि । अतिशुल्कसगंश्चार्य मार्गों यथा न देवोऽपि प्रहीतुं शक्नोति महिलानां हृवयम् । कथमन्यथेमे पुरातन्यो भूत- परिचल्याच्चलचित्तत्वाग्नेः स्नेाच्च स्वभावतः । रक्षिता यत्नतोऽपीह मतृष्वेता विकुर्वते ||२३| यदयं व महो त्यक्ता जीवितार्थं च हारितम् । सा म स्वजति निःस्नेहा कः स्त्रीणां वल्लभो नरः ||२४|| अहो, फ्वेयं तु as fतस्य वचनगोचरातिचारिणो पुरस्तात् संय्याधनस्येव रामफलुपता, पत्र चेदानों भारतस्य समस्येव निभावः, नव साशं पाशपतितस्य पक्षिण इव चक्षुषश्चापलम् पव चेदाम कुलिशकौलिलक्ष्येव निश्चलभावः । हृतविधे, किमपरः कोऽपि न तवास्ति वषोपायो येनैवमुपप्रलोभ्य प्राणिनः संहरति । कथं हि शाह नाम के वणिक की पत्नी ने मूलदेव के साथ काम सेवन किया। इसी प्रकार दूसरी भी 'उपाध्यापिका आदि स्त्रियों ने अपने पति के समक्ष जारों के साथ रतिविलास किया। स्त्रियों के हृदय को देवता भी नहीं जान सकता, अतः वह अतिसूक्ष्म सृष्टिवाला है । अन्यथा ये पुरानी बातें कैसे सुनी जाती हैं । व्यभिचारिणी होने से व चञ्चल चित्तवाली होने से तथा स्वाभाविक स्नेह-हीन होने के कारण स्त्रिय सावधानता पूर्वक रक्षा की हुई भी इस संसार में अपने पतियों के साथ विकृत होती हैं, अर्थात् उन्हें धोखा देती हैं ||२३|| जिसकी रक्षा के लिए मैंने राज्य छोड़ा और जिसकी रक्षार्थ मैंने ( छुकार नगर के राजकुमार ने आधी आयु दी वह मेरी पत्नी स्नेहशून्य होकर देवकेशी के साथ जाकर मुझे छोड़ रही है, मतः संसार में कौन पुरुष स्त्रियों का प्रेमपात्र हुआ है ? ||२४|| } १. एकशाटवाणिम्-पत्नी की कथा - 'एकशाट' नामके महाजन ने जो कि सर्वत्र अविश्वास था, अपनो स्त्री को रक्षा के लिए अपने को पत्नी के साथ एक साड़ी में ढक लिया। शशिमूलदेव उस बात को सुनकर गाया और वहाँपर हाथों के कड़े पहनने के बहाने से जब संकेस किये हुए मेघों से पानी बरस रहा या मत्र अर्धरात्रि में उसने उसको पत्नी को, जो सात तल्लेवाले महल के अमभागपर सो रही थी, अपहरण कर लिया। ★ जात्यलंकारः । २. उन्ह श्लोक को कया-पटना नगर को राजकुमारी समस्त शास्त्रों में प्रवीण थी, उसने यह प्रतिज्ञा को कि जो मुझे संगीत आदि कलाओं में जीत लेगा उसो की में पत्लो होऊंगी। उक्त बात को सुनकर छुकार नामक नगर के राजकुमार ने आकर उसे कलाओं में जीतकर उसके साथ विवाह किया। एक समय उस कन्या के पिता को महान साध्य बीमारी हुई। वहीं पर किसी कुलाचार्य ने ऐसा उपदेश दिया 'यदि इसकी राजकुमारी की देवी को बलि दी यह जीवित रह सकता है, अन्यथा नहीं। उक्त बात को सुनकर जमाई राजकुमार राज्य को छोड़कर स्त्री को लेकर महान् ट में प्रविष्ट हुआ। वहाँ पर दुष्ट साँप ने उम्र राजकुमारी को काट खाया। अपनी पत्नी के मोह से राजकुमार के हृदय में साहस पूर्वक अग्नि में प्रवेश करने का अभिप्राय हुआ। उस समय वन देवता ने इसके ऊपर दया करते हुए कहा - यदि जाप अपनी आधी बायु दोगे तो तुम्हारी पत्नी जीवित हो पकती है । प्रस्तुत राजकुमार ने अपनी पत्नी की रक्षा के लिए वैसा ही किया। अर्थात्--- अपनी आधी बायु दे दी, जिससे उसकी प्रिया जीवित हो गई। वह अपनी प्रिया के साथ एक नगर में प्रवेश करता हुआ प्याऊ के पास सो गया । उसी अवसर पर स्वेच्छाचार से आया हुआ उस नगर का निवासी देवणी उसे जगा कर ले गया। फिर सोकर उठे हुए उसके पति ने देवकेशी के साथ उसी नगर में प्रवेश करती हुई उसे देखा और पकड़ लिया । कहाँ जा रही है ? ऐसा विवाद होने पर उनको पत्नी ने कहा---यह देवकशी मेरा पति है। पुनः राजपुत्र ने कहा यदि तेरा यह निश्चय है तो देवता के
SR No.090546
Book TitleYashstilak Champoo Uttara Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages565
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, P000, & P045
File Size17 MB
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