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________________ यशस्तिलकचंम्पूकाव्ये शनिशमनुनीयमाना गृहमदमिव विडम्पयन्ति पुरुषम्, उपचारंगशमाणा वानसुभराः स मेष इत्याधिक्षिपन्ति, अपेक्षमाणाः पशुमिव मन्यन्ते, हापभुश्यमाना श्मशानकुटमिन परिहरन्ति, सेर्पमनुपुज्यमाना भुगम्य इव वशन्ति, गुणवद्भयो मिम्बाधिवोद्विजन्ते, शुचिक्रियेषु मृत्पिण्ड इवाभिनिविशन्ते । अनुरज्यन्स्य एवं भयरित कारणमनयंपरम्परावाः, हसन्त्य एव शाल्ययन्त्यङ्गानि. पायरय एवं वहन्ति बेहन, आलपन्त्य एव स्खलन्ति मनसः स्वयम्, आसजन्य एव फुर्वन्ति तृणादपि लघुतरं मनुष्यम्, भारल्यमाणाः स्वछले दारभन्ते दुष्कर्माणि । म वासामस्ति रक्षणोपायः । तथाहि अनुभवः कृतरक्षाशल्याप्यहल्या शिलाखण्डलेन सह संविषेश, हरयेहा धितापि गिरिसुता गजासुरेण. यमजठरालयापि छापा पाधकेज, की जानेवाली मनुष्य को वैसी विडम्बित ( क्लेशित ! करती हैं जैसे गह का सुन्दर ले दिन मिया जाता है। ये स्त्रियां पूजा ( सन्मान ) आदि द्वारा स्वीकार की जानेवाली परन्तु दान द्वारा भरण-पोषण के लिये अशक्य हुई पुरुष को बकरा मानकर उसका तिरस्कार करती हैं। ये स्त्रियाँ चाहों हुई पुरुप को पशु-सरीखा मानती हैं और जब ये बलात्कारपूर्वक भोगी जाती है तब पुरुष को वेसे छोड़ देती हैं जैसे श्मशान-घट अपवित्र जानकर छोड़ दिया जाता है एवं ये स्त्रियां क्रोधपूर्वक पूंछो जानेवालों सर्पिणी-सरीखी पुरुषको काट लेती है। ये स्त्रियां गुणवान पुरुषों से वैसी भयभीत होती हैं जैसे लोग कटुक होने से नीम वृक्ष से भयभीत होते हैं। ये पवित्र आचारवान पुरुपोंमें अपवित्र मिट्टी के ढेले सरीखा अभिप्राय रखती हैं। ये स्त्रियां स्नेह प्रकट करती हुई ही अनर्थपरम्परा को कारण होती हैं एवं हसतो हुई ही पुरुष के शरीरों को शल्य-सरोखों क्लेशित करती हैं। ये देखती हुई हो पुरुष-शरीर को भस्म कर डालती हैं और भाषण करतो हुई हो नित्त की स्थिरता भष्ट कर देती हैं । रतिविलास करती हुई ही मनुष्य को तृण में भी नीचा कर देती है और अनेक प्रकार से पालनपोषण की जानेवालों अपने कपट से दुष्कर्म (जार-गमन-आदि कुकृत्य) आरम्भ करती हैं, इनकी रक्षा का कोई उपाय नहीं है । उक्त वात को दृष्टान्त-माला द्वारा समर्थन करते हैं लोक-प्रसिद्ध वैदिक बचन है कि अहल्या (गौतम-भार्या ) ने, जिसको रक्षा-शल्य ( रक्षा के लिए काटों की बाड़ ) की गई है, इन्द्र के साथ रतिविलास किया।' शिवजी के शरीर के अर्ध भागपर स्थित हुई पार्वतीने गजासुरके साथ भोग विलास किया । इसी प्रकार बम के पेट में स्थित हुई भी 'छाया' नाम की कन्या ने पावक के साथ रतिविलास किया और एक अहत्या (गोतम पल्ली) की कथागोतम व कौशिक साथ-साथ विशेष तपश्चर्या कर रहे थे। ब्रह्माजी उन दोनोंकी तपश्चर्या के प्रभाव से प्रसन्न हुए, इसलिए उन्होंने मन से अहल्या को उत्पन्न किया और उन दोनों में से किसी एक फो इन्द्रपद देन की इच्छा को । कौशिक ने 'ऐश्वयं होनेपर समस्त वैभव प्राप्त होते है" ऐसा विचारफर इन्द्रपद ग्रहण किया और अहल्या के साथ रमण किया । गौतम ने उसे शाप दिया, जिससे उसका शरीर भगों ( योनियों ) से आच्छादित हुभा । २. पार्वती को कन्या--हिमालय पर्वतराज को पुी गौरी ने हाथो का रूप धारण करनेवाले शियजो को हपिनी बनाया फिर स्वेच्छापूर्वक विहार करनेवाली उसने मजासुर के साथ भोग-विलास किया । उस दोष से उसे शिवजों ने मार दिया। ३. छाया की कथा-वत्सगोत्र में जन्मधारण करनेवाले माकम्पनि ने तीर्थयात्रा करने के इच्छुक होते हुए यह यम धर्मराज है' ऐसा सोचकर अपनो युवती छाया नाम की कन्या को उसके लिए रक्षणार्थ समर्पण कर दिया। यम ने भी उसे अपने पेट में स्थापित कर लिया । एक समय जब यम उस छाया नामको कन्या को सरकण्डों के वन में स्थापित कर मामसरोवर में स्नान करने के लिए गया तब उस छायाने पापक के साथ मोग-विलास किया !
SR No.090546
Book TitleYashstilak Champoo Uttara Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages565
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, P000, & P045
File Size17 MB
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