SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थ आश्वासः विषवत् परिपाकेषु को विपत्ति न कुर्वते । जनयन्ति म को प्रीतिमापासे मपुरेक्षणाः ॥१६॥ मार्पयन्ति मनः सही कुर्वन्ति मिरहे भयम् । अव स्थितिः कानिस्खलानामिष योषिताम् ॥१७॥ ध्येवं गन्धरयुपेक्षायां प्रीतो प्रोति न तन्वते । रोपे तोषे च नारीणां सुलमस्ति न कामिषु ॥१८।। प्रियोपचारसंचारे फुले रूपे वयस्यपि । अन्येष्वपि गुणेष्वासामपेक्षास्त न मृत्युवत् ॥१९॥ यूनुष्यो बाणास्त्रिशूलं च वलित्रयम् । हवयं कर्तरी यासा ताः कर्म नु म धष्णिकाः ॥२०॥ स्त्रीय सामाविषं दृष्टौ न सखिति मे मनः । सद्दष्ट एवं लोको हि दृश्यते भस्मतां गतः ।।२।। एतदेव द्वधं तस्मात् कार्य श्री हितविभिः । आहारवत्प्रवृत्तिर्वानिवृत्तिरयवापरा ॥२२॥ कि च । मपि त्यजत्पेनोपायपटुभिरनुप्रविश्यमानः सप्ताभिस्यात्मनः स्वभावम्, अपि भवति विवितवितव्यैरुपयुज्यमानं विषमपामृतम्, अपि शश्यते महासाहसंघश्यतामानेत कमसोनामपि फुलम्, अपि भवन्त्युपप्रलोभनप्रवीणश्मवर्षमागः यूरजन्तयोप्यनुलोमचरिताः, सुलभाश्च बल शिलामामपि भृकरने सन्ति विषयः, न पुनः स्त्रीणाम् । इमा सीमाणिसन्न महीं कर? अनुगग काक होन से स्नेह को उत्पन्न नहीं करती ?' || १६ ।। स्त्रियाँ संयोग के अवसर पर अपना चित्त अर्पण नहीं करती. अर्थात मानसिक अभिप्राय प्रकट नहीं करती और वियोग में भय उत्पन्न करती हैं, इसलिए स्त्रियों की स्थिति ( स्वभाव ) दुष्टों-सरीखी कहने को अशक्य और अपूर्व { अभिनव ) ही होती है । अर्थात्-जैसे दुष्टोंका संगम करने पर वे लोग मानसिक अभिप्राय प्रकट नहीं करते और दूर किये हुए भय उत्पन्न करते हैं ।।१७॥ स्त्रियां निरादर करनेसे द्वेष करने लगती हैं और प्रेम करनेसे प्रेम नहीं करती, अतः स्त्रियों के कुपित व सन्तुष्ट होने पर उनसे कामो पुरुषोंको सुख प्राप्त नहीं होता ।। १८ ।। स्त्रियों को उपकार करता, उच्चकुल, सुन्दर रूप तथा जवानी एवं दूसरे गुणों की अभिलाषा वैसो नहीं होती, अर्थात-उक्त गणोंके कारण वे अनुरक्त नहीं होती, जैसे यमराज को उक्त अनुग्रह, उच्चकुल आदि गणों की अपेक्षा नहीं होती। अर्थात-उक्त गणों के कारण वह किसी से अनरक्त होकर उसे अपने मुख मा ग्रास बनाना नहीं छोड़ता ॥ १९॥ जिन स्त्रियों को भृकुटि धनुष है, तिरछी चितवन बाण हैं व उदर को त्रिवली त्रिशूल हैं एवं हृदय कैंची है, वे स्त्रियाँ चण्डिका देवो क्यों नहीं हैं ? "॥ २० ।। मुझे ऐसा प्रतीत होता है-मानों-स्त्रियों की दधि में साक्षात विष होता है और सपा की दृष्टि में विष नहीं होता। क्योंकि उन्न स्त्रियों से दष्टिगोचर हुआ मनुष्य तो भस्म होता हुआ देखा जाता है परन्तु सों से दृष्टिगोचर हुआ पुरुष भस्म होता 'हबा नहीं देखा जाता ॥ २१ ।। अतः सुखाभिलाषी पुरुष को स्त्रियों के विषय में यही निम्न प्रकार दो कर्तव्य करने चाहिए । या तो उनमें आहार की तरह प्रवृत्ति करनी चाहिए अथवा उनसे नोहार-सी निवृत्ति ( त्याग ) करनी चाहिए ॥२२॥ __ संभावना है कि उपाय-चतुर पुरुषों द्वारा मन्त्रित की जानेवाली अग्नि अपनी उष्णत्व प्रकृति को छोड़ देती है परन्तु स्त्रियाँ अपनी प्रकृति नहीं छोड़ती। मान्त्रिक व तान्त्रिक पुरुषों द्वारा उपयोग किया जानेवाला विष भो अमृत हो जाता है। इसीप्रकार संभावना है कि अद्भुत कार्य करनेवाले पुरुषों से राक्षसो-समूह चशमें लाने के लिए शक्य है परन्तु खोटी स्त्रियां वश में नहीं लाई जा सकती। लोभ दिखाने में प्रवीण पुरुषों से आराधन किये जानेवाले सिंह-व्यात्रादि करजन्तु अनुकल हो जाते हैं परन्तु स्त्रियाँ अनुकूल नहीं होती। सम्भावना है कि पाषाणों को मृदु-कोमल बनाने के उपाय हैं, परन्तु कठोर हृदयवाली स्त्रियों को मृदु हृदयवाली करने के उपाय नहीं हैं। ये कामिनियाँ निरन्तर शिक्षित १. आक्षेपोपमालंकारः । २. जपमालंकारः । ३. जात्यलंकारः । ४. समुच्चयोपमालंकारः। ५. उपमाक्षेपालंकारः । ६. उत्प्रेशानुमानालंकारः। ७. उपमालंकारः ।
SR No.090546
Book TitleYashstilak Champoo Uttara Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages565
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, P000, & P045
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy