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चतुर्थं आश्वास
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स्तनमलकपोलभुजगा राजन्ते करजराजयः कुटिलाः । मदनस्य युवतिवसतिषु निवासलिखिता प्रशास्तिरिव ।। १० ।। मानि मलिनत्यं वातुः कस्यापि युज्यते कर्तुम् । स्तमविवेकि कठिनं कुचयुग्मं कोऽपि किं व्यजति ॥ ११ ॥ मोतियांत एव मन्वन्ति विरतरं पुरुषाः । नूपुरवरिक सुरते महोत्सवः केशकुतुमेषु ॥ १२ ॥
अपि च ।
पुष्पेष्व शिलीमुखावलिर सुन्नीलालक भीरियं नेत्रे श्रोत्रसमीपमाश्रितवती किञ्चित्मियी भाषितुम् । ari चुम्बितुमुन्नताविव कुवावस्थाः पुनः सुभुवः कास्थानसमृद्धिमारितया मध्यं कुशत्वं गतम् ।। १३ ।। मनसिजकलभोऽयं नूनमस्मिन् प्रवेशे निवसति वनितानामुयमूलप्रचारः ।
यदिह तनुज राजिवयाजतो नाभिवाप्य प्रसृतवपुरिवास्या लक्ष्यते हस्त एषः ।। १४ ।।
स्त्री के नेत्रों का जल पुरुष के ओष्ठ पर लग गया । अतः कामदेव की चेष्टा दिगम्बर मुनि सरोत्री विपरीत होने के कारण आश्चर्यजनक होती है । वर्षात् जिसप्रकार ध्यान योग से दिगम्बर मुनि के नेत्र रक्त हो जाते हैं एवं विशेष प्यास के कारण ओष्ठ श्याम हो जाते हैं ॥७॥ स्त्रियों की प्रकट हुई स्वेदविन्दुरूपी मजरो-श्रेणी मन को विशेष रूप से प्रमुदित करती है एवं हार मानों - लज्जित हुआ सरीखा स्तनों के मध्य प्रवेश करता है ||4|| स्त्रियों के हृदय पर तत्काल की हुई नखों को व्रणराजि ( श्रेणी ) ऐसी प्रतीत होती है— मानों— कामदेव के वाणरूपी कॉटों के निकलने से उत्पन्न हुआ प्रायः मार्ग ही है ||९|| कमनीय कामितियों के कुचों, गलों व गालों को स्थली तथा भुजलताओं पर स्थित हुई व वक्र नखात श्रेणियां सुशोभित होती हुई ऐसी मालूम पड़ती थीं— मानों – कामदेवसंबंधी युवतीरूपी महलपर निवास करने से उकीरी हुई प्रवास्तियाँ ही हैं ||१०||* याचक अथवा प्रयोजनार्थी पुरुष के आनेपर किसी दाता को अपना मुख म्लान (श्याम) करना उचित नहीं है । उदाहरणार्थ- क्या कोई पुरुष ( उदरस्थित बालक या कामसेवन में प्रवृत्त हुआ पुरुष ) ऐसे स्तनों के जोड़े को, जो कि स्तब्ध (उन्नत - उठा हुआ व पक्षान्तर में अभिमानी) और अविवेकी ( अघटित व पक्षान्तर में सदसद्विवेक- शून्य ) एवं कठिन । कर्कश – कड़े एवं पक्षान्तर में निर्दयी या लुब्ध ) है, छोड़ता है ? अपितु स्थिति) होती नहीं छोड़ता ||११||५ जिन पुरुषों में नीचेर्वृत्ति ( विनयशीलता व पक्षान्तर में निकृष्ट पद है, वे ही पुरुष निरन्तर वृद्धिंगत होते हैं । उदाहरणार्थ- सम्भोग कीड़ा में नूपुरों ( पाद-मजीरों ) सरोखा महोत्सव क्या चिर पर स्थित हुए पुष्पों में होता है ? ||१२|| सुन्दर भ्रकुटिशालिनी इस कमनीय कामिनी की यह प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर हुई श्याम कंशपाश-लक्ष्मी, कामदेव द्वारा प्रेरित की गई बाणश्रेणी सरीखी हुई । अर्थात् इसके श्याम केशों की लक्ष्मी ऐसी प्रतीत होती है— मानों – कामदेव द्वारा प्रेरित की गई वाण श्रेणी ही है । tear इसकी पुष्पों के मध्यवर्तिनी श्यामकेशलक्ष्मी भ्रमर-रहित हो गई। इसके दोनों नेत्र दोनों कानों के समीप आश्रित हुए ऐसे प्रतीत होते थे मानों--परस्पर में कुछ कहने के लिए हो श्रोत्रों के समीप आश्रित हुए हैं। इसके दोनों स्तन उन्नत हुए ऐसे प्रतोत होते थे मानों - इसका मुख चुम्बन करने के लिए ही उन्नत ( उठे हुए ) हुए हैं । एवं करधोनी के स्थान की उन्नति से द्वेप करने के कारण से ही मानों - इसका मध्यभाग ( कमर ) कुश हो गया" ||१३|| करुमों ( घुटनों के उपरितन भागों ) के मूल में संचार करनेवाला यह कामदेव रूपी हाथी का बच्चा fear से कामिनियों के इस स्मर- मन्दिर प्रदेश में निवास करता है ।
१. दीपको मात्वलंकारः । २. रूपकोपमालंकारः । ३. उत्प्रेक्षादीपकालंकारः । ४. समुच्चयरूपकोत्प्रेक्षालंकारः । ५. पलेवा क्षेपालंकारः । ६. माक्षेपालंकारः । ७. उत्प्रेक्षालंकारः ।