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चतुर्थ आश्वास
प्रसूनस्तथान्तरोद्गतत्तिच्छदच्छायापि पा
न मानवः पुरुषाणामनारभ्य कांचिन्महतो मापदमुपशाम्यतीति मनीषयेव निजान्वयबीज संरक्षणाय परं केन्निवृतगनप्रादादेशेषु निभृश्य स्थितिकुशले च तमःपटले, भवत्सु च मघुगन्धलुब्धमधुपसंबाधनिरुध्यमानविधितिरेषु पिलासिनामुदवसितवातायन विवरेषु,
करविलम्बितकुसुमसर सौरभसुभगेषु श्रमजीविनामामणरङ्गभागेषु
परिवर्तमान काश्मीर्मलयनागुदपरिमलोद्गार सारेषु सौगन्धिकानां विपणिविस्तारेषु,
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ससंभ्रममितस्ततः परिसर्पता संभोगोपकरणाहिता वरेण पौरनिकरेण निजवलासदर्शनां कारिममोरयाभिरवधारिता संकथाभिः स्मरकुरङ्गको बावन वसतिभिः पप्याङ्गनासमितिभिरात्मपतिसंविष्टधटनाकुलितद्दश्येनावमोरितसखीजनसंभाषणोत्तरदानसमयेन संचरता संचारिका निकायेन च समाकुलेषु समन्ततो राजयोथीमण्डलेषु,
हुए नीलकमल उपमा वर्तमान है। इसीप्रकार जो उज्चल पुष्प गुच्छों के मध्य में उत्पन्न हुए नौलपत्र की शोभा को स्पर्श कर रहा है- उसकी उपमा धारण कर रहा है।
जन्न अन्धकारपटल 'महान पुरुषों के साथ युद्ध करना, निश्चय से पुरुषों के ऊपर कोई महात् विपत्ति उत्पन्न किये बिना शान्त नहीं होता। इसप्रकार की वृद्धि में ही मानों - अपने वंशवीज ( अन्धकार ) की रक्षा के लिए केवल ऐसे प्रदेशों में, जो कि नीचे, ढँक हुए, गहन व सूर्यादि तेज से होन थे, छिपकर अपनी स्थिति करने में निपुण होरहा था ।
विलासी पुरुषों के गृह सम्बन्धी झरोखोंके छिद्र, जिनमें मद्य की गन्ध में लुब्ध हुए मैवरों के जमाव द्वारा, चन्द्र-किरणों का प्रसार रोका गया है, ऐसे हो रहे थे ।
जब मालाकारों के बाजार के अग्रभाग, हाथों से ऊपर चलाए हुए पुष्पहारों की सुगन्धि से विशेष मनोहर हो रहे थे !
जब सुगन्धि द्रव्य बेंचनेवाले व्यापारियों की दुकानों के विस्तार, पलटे जानेवाले कुङ्कुम, मलयागिर , व अगुरु की सुगन्धि के प्रादुर्भावों से अत्यन्त मनोहर हो रहे थे ।
चन्दन,
जब राजमार्गों की श्रेणिय, नागरिक लोक-समूह से, जो कि सादर यहाँ वहाँ चारों ओर जा रहा था व जिसने भोग सामग्री के उपकरणों ( साधनों - ताम्बुल आदि ) में बादर किया था, चारों ओर से व्याप्त हो रही थीं ।
जो ( राजमार्ग - श्रेणियां), वेश्या -समूहों से व्याप्त हो रही थीं, जिनके मनोरथ कामी पुरुषों के लिए अपने हाव-भाव विभ्रम आदि दिखाने से अहङ्कारयुक्त हैं, जिन्होंने कामी पुरुषों के निरर्थक प्रयनों की वार्ताएं ठीक-ठीक निश्चय की थीं एवं जो कामदेवरूपी हिरण की कोड़ा की वनस्थलियाँ हैं ।
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इसीप्रकार जो ऐसी दूती - समूह से व्याप्त हो रही थीं, जिसका हृदय, अपने स्वामी द्वारा सिखाई हुई घटना से भरा हुआ है और जिसने सखीजनों के परस्पर भाषण सम्बन्धी प्रत्युत्तर देने का अवसर तिरस्कृत किया है एवं जो विवक्षित गृहों में प्रवेश कर रहा था।
१. उत्प्रेक्षाकारः ।