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________________ चतुरं श्वास ३ समस्तमाला रामप्रयमतराविर्भूत किवा लस्तम्बाम्बरे अपरगिरिशिखराश्रयाश्रमादास तापसादानयितानिसमाज पाटलपटप्रसान स्पृशि पूर्वतराकूपारती रावतरतपनस्यन्त्रनातिथेयक्रियोसाल जलधिजलवेवताप्रकल्पितप्रवालाङ्कुरो पवार व्यतिकरे सकलविषमिवश्यता देश विजृम्भिष्यमाणमनसिश्वर्य पर्याप्तपत्र सिन्दूर मुद्रकरोधिषि नवयौवनरसवज्ञाङ्गनापशेषरभरा विभविष्यन्मममकन्दलकदम्बविम्बिनि रतिफलकृतिकुतूहल बहुलविलासिजनसं निकटङ्गारसं गरसं भावनोत्तरङ्गान्तरङ्गनङ्गविस्तारि तातिरिक्तसंकेतकेतुकमनीये मिथुनङ्गरागापहारादिव वरदकन्त्र रपरागसंगमावि वाडिमोकुसुमकुद्मलपरिमलनादिव नदीतीरतपोधनोन्मुक्तरक्तचन्दन वग्वनाविव फनककेतकोरजोरञ्जनादिव वृक्षोत्पलमञ्जरोमकरन्दस्पन्वादिव व नितान्तं लोहितायति निजारुणिभर ज्जित वरुणपुरपुरंधिकाघरवले सति संध्याराग महसि तरस रसिकराक्षोभस मोक्ष पाहण कविहृदय रक्षावेक्षणादिव अधोक्षविपक्षोत्नीवदानवावस्कन्दभीते पर देवों द्वारा फैलाए हुए सुवर्ण मण्डप की शोभा वर्तमान है। जिसका विस्तार अन्धकाररूपी तमाल वृक्षों के वन से पूर्व में ही प्रकट हुए पल्लवोंके समूह सरीखा है। जो, अस्ताचल पर्वत की शिखर पर आश्रय वाले निवास गृहों में रहने वाले तपस्वियों के गीले व चंदेवारूप किये गए ( सुखाने के लिए फैलाए हुए ) तथा गेरु के जल से लाल किये हुए वस्त्रों के विस्तार को सदृशता धारण करता है । म जिसमें समुद्र की जल देवताओं द्वारा जो कि पश्चिम समुद्र के तटपर जाते हुए सूर्य की अतिथि सत्कार क्रिया में उत्कण्ठित हो रहे थे, रची हुई गल्लवारों की पूजा की तुलना पाई जाती है। जिसकी कान्ति समस्त कामी पुरुषों के बशीकरण प्रदेश पर फैलने वाली कामदेव की लक्ष्मी के परिपूर्ण लेख में स्थित हुए सिन्दूर चिह्न की सरीखी है। जो उनकी वृक्ष के नगे अर-समूह को तिरस्कृत करता है, जो कि नई जवानी के रस में पराधीन हुई कमनीय कामिनियों के कुचकलशों के भार से प्रकट हो रहे थे । जो ऐसे भन में स्थित हुए कामदेव द्वारा फैलाई हुई विशेष लालिमा वाली संकेत ध्वजाओं-सरीखा मनोहर है, जो कि कामी पुरुषों के समूहरूपी सैनिकों के रति क्रोड़ा युद्ध की, जो कि रति क्रोड़ा सम्बन्धी कलहू विधान में विशेष कौतुक करता है, विशेष रुचि में उत्कट है। जो विशेष विस्तृत लालिमायुक्त होने से ऐसा मालूम पड़ता था मानों रात्रि निकट होने के कारण चकवा चकवी पक्षियों का बियोग हो जाने से उनके राग का अपहरण करने से ही मानों विशेष लालिमायुक्त हुआ है। अचत्रा जो ऐसा प्रतीत होता था मानों हिंगुल व गुफाओं सम्बन्धी परागों के संगम से ही ऐसा हुआ है । अथवा ऐसा मालूम पड़ता था - मानों दाड़िम वृक्ष के फूलों की कलियों के विमर्दन से ही ऐसा हुआ है । अथवा मानों-गङ्गा नदी के तटों पर वर्तमान तपस्वियों द्वारा सुयं की पूजा के लिए ऊपर फेंके हुए लाल चन्दन के सङ्गम से ही ऐसा हुआ है। जो ऐसा मालूम पड़ता था -- मानों धतुरा अथवा टेसू अथवा नाग केसर तथा केतकी के पुष्पों की पराग सम्बन्धी लालिमा के संयोग से हो ऐसा हुआ है | अथवा मानों कणिकार वृक्षों को पुष्प मरियों के पुष्प रस के क्षरण से ऐसा हुआ है और जिसने अपनी लालिमा द्वारा पश्चिम दिक्पाल नगर की कमनीय कामिनियों के दल रज्जित किये हैं ।" इसी प्रकार जब स्थल कमलों के समूह की पत्र-श्रेणी संकुचित हो रही थी, इससे ऐसा मालूम पड़ता था— मानों - कच्चे मांस की आकांक्षा करनेवाले राक्षसों से उत्पन्न हुए क्षोभ के देखने से विशेष लालिमा-युक्त अपने हृदयों के संरक्षण की आकांक्षा से ही मानों अपने पत्र समूह संकुचित कर रहे थे । अर्थात् मानों-स्थल कमलों ने ऐसा विचार किया कि 'हमारे हृदय काल हैं, इसलिए कहीं राक्षस उन्हें मांस समझकर भक्षण न कर लें' इस प्रकार को शंका से हो मानों-कमलों ने अपने हृदयों का संवरण ( संकोच ) कर लिया था । " अथवा मानों - श्री नारायण के शत्रुभूत व विशेष अभिमानी दानवों की रात्रि संबंधी बाधा के भय १. उत्प्रेक्षाकारः । २. कारः ।
SR No.090546
Book TitleYashstilak Champoo Uttara Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages565
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, P000, & P045
File Size17 MB
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