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दवारा अपनी मोग्यता के अनुरूप धर्मः ग्रहण किया श्रीसुदत्ताचार्ग से धर्म ग्रहण करने वाले दूसरे पशोजाना और अल्लक जोड़े द्वारा कुमारकाल व्यतीत मति कुमार-मादि का देवेन्द्र होना
४८. कार के मुनिधर्म व माथिका-धर्म महण किया जाना, ग्रन्धकार की कामना, इस अष्ट सहस्री प्रमाण वाले शुल्लक जोडे द्वारा ममाधिमरण करके दूसरे ऐशान कल्प यमास्तिलक के अध्ययन का फल, प्रत्यकर्ता को प्रभास्ति, नामक स्वर्ग में जन्म लेना और श्रावकधर्म धारण किये हुए रक नाम के लेखक का परिचय, अन्यकर्ता का समय व मारिदत्त राजा द्वारा उसी तरह स्वर्गलक्ष्मी का विलास प्राक्ष स्थान, 'यापास्तिलक' महाकाव्य की चौदह वस्तुएं ४८०-४८२ किया जाना और चण्डमारी वो हरा भाचार्य को नमस्कार
प्रत्य मंगल ब धात्मपरिचय
४८३.८८४ करके अकृत्रिम चन्यालयों के दर्शनार्थ प्रस्पान किया সাণা
श्लोकानामकाराधनुक्रमः ( परि० नं०१) ४-५-४६७
४७६ ___ श्रीसुदत्ताचार्ग द्वारा सिद्धवर क्ट पर धर्म ध्यान करके
अप्रयुक्त क्लिष्टतम-शब्द-निघण्टुः (परि० नं. २) लालय नामके मातवें स्वर्ग में समस्त देवों के नेता देव
४६८-५२८ होना।
धन्यवाद व शुद्धि पत्र
५२९-५३२